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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 163 वासना रहित। (स.१७४, १७५) णिरोध/णिरोह पुं निरोध] रुकावट, रोकना, बाधा। (पंचा.१५०, स.१९२, भा.१०) णिरोहण न [निरोधन] रुकावट। (भा.२५) णिलअ/णिलय पुं निलय] घर, स्थान, मकान। (बो.५०, भा.३३) जिल्लोह वि [निर्लोभ] लोभरहित, शुचितायुक्त, पवित्र। (बो.४९) णिवदिद वि [निपतित नीचे गिरता हुआ,दृष्टिगत, गोचर हुआ। अत्यं अक्खणिवदिदं । (प्रव.४०) णिवत्त नि+वृत्] छोड़ना, लौटना, हटना। (स.७४, निय.५९) णिवत्तए णिवत्तदे (व.प्र.ए.) णिवास पुं निवास स्थान, रहना, जगह, निवास। (बो.५०) परकियणिलयणिवासा। णिवित्ति स्त्री [निवृत्ति], प्रत्यावर्तन, प्रवृत्ति का अभाव । (द्वा.७५) णिवत्त वि निवृत्त निष्पन्न, रचित, अस्तित्वगुण को प्राप्त, मोक्ष अवस्था को प्राप्त। (स.६६, प्रव.१०) णत्थि किरिया सहावणिव्वत्ता। (प्रव. जे.२४) णिव्वा अक [नि+वा] मुक्त होना। (प्रव. चा.३७) णिव्वाण न [निर्वाण] मुक्ति, मोक्ष। (स.६४, निय.२, प्रव.६, पंचा.१७०) -पुर न [पुर] मुक्तिधाम, मोक्षनगर। (पंचा.७०) -संपत्ति स्त्री [सम्पत्ति] मुक्ति की प्राप्ति,मुक्तिरूपी वैभव। (प्रव.५) -सुह न [सुख निर्वाणसुख, मोक्षसुख । (प्रव.११) णिव्वाद वि [निर्वात] मुक्त, सिद्ध। (पंचा.१०९) णिव्वादा For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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