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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढिल्ल वि [दे] ढीला, शिथिल। (सू.२६) दुरुदुल्लिअ वि दि] भ्रमणशील, घूमता हुआ। (भा.३६,४५).. ण णअ [न] नहीं, मत, निषेधार्थक, अव्यय। (पंचा.७,स.२८०,निय. ३६, भा.२, द.२, प्रव. चा.६) ण दु एस मज्झभावो। (स.१९९) ण पविट्ठो णाविट्ठो। (प्रव.२९) णं अ [णं] वास्तव में, निश्चय से। (चा.२०) णओसय पुंन [नपुंसक नपुंसक, क्लीब। (निय.४५) णग्ग वि [नग्न, वस्त्र रहित, अचेलक, निर्ग्रन्थ। (सू.२३, भा.५४) णग्गो विमोक्खमग्गो। (सू.२३) भावेण होइ णग्गो। (भा.५४) -त्तण वि [त्व] नग्नत्व, नग्नपना। (भा.५५) णग्गत्तणं अकज्ज। -रूव पुंरूप] नग्न आकृति। (भा.७१) णच्च अक नृत्] नृत्य करना, नाचना। णच्चदि गायदि। (लिं.४) णच्चा सं.कृ. [ज्ञात्वा] जानकर। (निय.९४) णज्ज सक [ज्ञा] जानना, ज्ञान करना। दुक्खे णज्जइ अप्पा। (मो.६५) गट्ठ वि [नष्ट] नष्ट, नाश को प्राप्त, रहित। (पंचा.१७, प्रव.३८, निय.७२, बो.५२, भा.१४९) मणुसत्तणेण णट्ठो। (पंचा.१७) -अट्ट त्रि [अष्ट] अष्ट कर्म से रहित। णट्ठट्ठकम्मबंधेण। (बो.२८) -चारित पुन [चारित्र] चारित्र रहित,चारित्र से च्युत हवदि हि For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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