SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 119 चिटुं कुव्वंतो। (स.३५५) चिट्ठासु (स.ब.स.२४१) चित्तन [चित्त] 1. हृदय, मन। (पंचा.१३५, निय.११६,स.२७१) चित्ते णत्थि कलुस्सं । (पंचा.१३५) -पसाद पुं [प्रसाद] चित्त की प्रसन्नता, चित्त की निर्मलता। चित्तपसादो य जस्स भावम्मि। (पंचा.१३१) बुद्धि, व्यवसाय, अध्यवसान, मति, विज्ञान, चित्त भाव और परिणाम ये सब एकार्थवाची हैं। (स.२७१) 2. वि [चित्र विचित्र, नाना प्रकार का। (प्रव.५१) सव्वत्थ संभवं चित्तं। (प्रव.५१) चिय/च्चिय अ [एव] ही, निश्चयात्मक अव्यय। (स.१३९. चा.६) जह जीवेण सहच्चिय। (स.१३९) चिर न [चिर] बहुत समय, देर। (स.२८८) णत्थि चिरं वा खिप्पं । (पंचा.२६) -काल पुं [काल] बहुत समय, अधिकसमय। चिरकालपडिबद्धो। (स.२८८) -संचिय वि [संचित] बहुत समय से संचित, काफी समय से इकट्ठा किया हुआ। (भा.१०९) चिरसंचियकोहसिहं। (भा.१०९) चुअ वि [च्युत च्युत, एक जन्म से दूसरे जन्म को प्राप्त। (मो. ८,७७) चुक्क अक [भ्रंश्] चूकना, रहना, छूट जाना। (बो.२२, स.५) चुलसीदी वि चतुरशीति] चौरासी । (भा.१३६) चूडामणि पुंस्त्री [चूड़ामणि] सिरमोर, सिरताज, शिखर का ऊपरी हिस्सा। (भा.९३) चेइ/चेइय पुंन [चैत्य] प्रतिमा, देव। (भा.९१, बो.७८) चेइयबंधं For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy