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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 110 गुरुत्व, गुरुभार, बहुत भारी भार। (मो.२१) लेवि गुरुभारं! - भेय पुं न [भेद] बड़ा भेद,बड़ा अन्तर पडिवालंताणं गुरुभेयं। (मो.२५) -यर वि [तर गुरुतर, अत्यन्तभारी। (भा.२६) गुरुयरपव्वय। (भा.२६) -वयण न [वचन] गुरुवचन, गुरुवाणी। गुरुवयणं पि य विणओ। (प्रव.चा.२५) गुरुणा (तृ.ए.प्रव.चा.७) गुरूणं (ष.ब.पंचा.१३६,भा.९१) अणुगमणं पि गुरूणं। (पंचा. १३६) गूढ वि [गूढ] प्रच्छन्न, छिपा हुआ। गूढे रहिए परोपरोहेण। (निय.६५) गेज्झ वि [ग्राह्य] ग्रहण योग्य । णेव इंदिए गेज्झं। (निय.२६) गेण्ह सक [ग्रह] ग्रहण करना, लेना, स्वीकार करना। गेण्हदि णेव ण मुंचदि। (प्रव.३२) गेण्हदे (व.प्र.ए.निय.९७) गेण्हंति (व. प्र.ब. प्रव.५६) गेण्हदु (वि. आ. प्र. ए.प्रव.चा. २३) गेवेज्ज न [ग्रैवेयक] ग्रैवेयक, देवों का विमान। (द्वा.२८) जाव दु उवरिल्लया दु गेवेज्जा। (दा.२८) । गेहन गृह घर, मकान, गृह। उत्तममज्झिमगेहे। (बो.४७) गो स्त्री [गो] गाय। (शी.२९) गोपसुमहिलाण। (शी.२९) -खीर न [क्षीर] गाय का दूध | गोखीरखंघधवलं। (बो.३७) गोसीर न [गोशीर्ष] चन्दन। (भा.८२) वज्जं जह तरुगणाण गोसीरं। (भा.८२) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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