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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 105 गब्भ पुं गर्भ] गर्भ, उदर, कुक्षि, पेट, उत्पत्ति स्थान, जन्मस्थान। (पंचा.११३) -त्य वि [स्थ] गर्भ में स्थित । (पंचा.११३) -वसहि स्त्री [वसति] गर्भ के आवास, गर्भ के स्थान। (भा.१७) कलिमलबहुला हि गब्भवसहीहि। (भा.१७) -हर न [गृह] गर्भघर, गर्भगृह, घर का भीतरी भाग। (भा.१२२) जह दीवो गब्भहरे। (भा.१२२) गम सक [गम्] जाना, गमन करना। (शी.३२) सो गमयदि णरयवेयणं पउरं। (शी.३२) गमण न [गमन] गमन, गति। (पंचा.८८, प्रव. जे.४१, निय.१८३) गमणं जाणेहि जाव धम्मत्थी। (निय.१८३) -अणुग्गहयर वि [अनुग्रहकर गमन में उपकारक। (पंचा.८५) गमणाणुग्गहयरं हवदि लोए। (पंचा.८५) -ठिदि स्त्री [स्थिति] गमनस्थिति, गमन की मर्यादा। जादो अलोगलोगो, तेसिं सब्भावदो गमणठिदी। (पंचा.८७) -णिमित्त पुं [निमित्त] गमन में कारण । गमणणिमित्तं धम्मं । (निय.३०) -हेदु पुं हेतु] गमन में कारण, गमन में सहकारी। जदि हवदि गमणहेदू। (पंचा.९४) गमय वि [गमक] बोधक, व्याख्याता। (बो.६१) -गुरु पुं [गुरु] व्याख्याकारों में प्रमुख। (बो.६१) गमयगुरु भयवओ जयउ। (बो.६१) गरह सक [गर्ह) निंदा करना, घृणा करना। तं गरहि गुरुसयासे। (भा.१०६) गरहि (वि. आ.म.ए.भा.१०६) गरहा स्त्री [गर्दा] निंदा, घृणा, दोष प्रकट करना। जिंदा For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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