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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०) અરજ કરવામાં આવી અને દયાલુ શ્રીમાન દીવાનસાહેબે તે અરજ ધ્યાનમાં લઈને દીવાલીના દિવસે શ્રીજજસાહેબ સ્ટેટ રતલામને મહારાજ શ્રીમાન યતીન્દ્રવિજયજી પાસે અને શ્રીસાગરજીની પાસે મેકલાવી બન્ને તરફના હેન્ડબિલો મુલતવી રખાવ્યાં છે. ખુશી થવા જેવી વાત એ છે કે શ્રીમાન સાગરાનંદસૂરિજીએ પોતાના શરીર પર પહેરતા વર્યોમાં સફેદ વસ્ત્રને મુખ્ય स्थान मा५१॥ २३ ४री दीघुछ. शांति: ! शांति: !! शांति: भुप४ सभा-या२, ५. १०४, २५४ २८५, १४ सि०५२ सन् १८२३. . इससे सागरजी की सत्यता और कुटिलता का पूरा पता लग जाता है, इसलिये इस विषय को विशेष स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि सागरजी की असत्य के परदे से आच्छादित सभी पोपलीला का पोकल अब खुलंग्वुला हो चुका है और उसको आबाल वृद्ध सभी अच्छी तरह जान चुके हैं । अतएव अब वे अपनी गिरी दशा को चाहे कैसे भी असत्य लेखों के रूपक से सुधारने का उद्योग करें, परन्तु वह किसी के विश्वास लायक नहीं हो सकती। आश्चर्य है कि चार चार दफे शास्त्रार्थ के लिये प्रतिज्ञा पूर्वक मुद्रित चेलेंज दिये गये और शास्त्रार्थ को समझाने का पूरा प्रबन्ध भी किया गया। इससे घबरा कर, नहीं नहीं निर्बलता के कारण रतलाम से ऐसा निशि-पलायन किया कि ठेठ कलकत्ता में जाके सांस लिया और अब दो-ढाई वर्ष बीतने बाद अंधभक्तों के शरण में गिर कर अपनी बहादुरी का तौल बताना शुरू किया है। भला! इस बहादुरी को मूर्ख अंधभक्तों के सिवाय दूसरा कौन सगह सकता है ? इस विषय में एक विद्वान्ने ठीक ही कहा है कि For Private And Personal Use Only
SR No.020446
Book TitleKulingivadanodgar Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandvijay
PublisherK R Oswal
Publication Year1926
Total Pages79
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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