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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५४) महाराजने काषायिकदशा का उत्पादक हेतु क्या बताया है ? " अकलुषितमतयो यतयः, नाहमेवमतो मे कषायकलुषितस्य धातुरक्तानि वस्त्राणि भवन्तु - साधु कपाय रहित मतिवाले होते हैं, मैं वैसा नहीं हूं, अतः कषायकलुपित मतिवाले मुझको धातु ( गेरु ) से रंगे हुए वस्त्र हों" किरणावलीकार के इस कथन से साफ जाहिर होता है कि मरीचि को कापायिक दशा का उत्पादक हेतु कपायकलुषितमति है, न कि रंग से रंगना, और खुद की कपाय. कलुपित मति मान करके मरीचिने धातुरक्त व धारा किये हैं । कहिये ! कषायवाले को कपायला वस्त्र रखना ऐसा मरीचि का सिद्धान्त हुआ या नहीं ? यदि हुआ तो बस, हम भी यही कहते हैं कि कपाय कलुषित मतिवाले लोगों के लिये धातुरक्त वस्त्र हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो मरीचि को 'सुकंवग य समया, निरंग' ऐसी विचारणा करके धातुरक्त वस्त्र रखने की जरूरत क्यों पडती ? दूसरी बात मरीचि की विचारणा में यह भी मिलती है कि सफेद कपड़ों के धारक और विलकुल कपडे रहित ये दो तरह के शुद्ध मुनि होते हैं। इससे सफेद कपडे रखना ही शुद्ध मुनिवरों के लिये सिद्ध है। पू० - शासनरक्षकों में दुराचारी से शासन को बचाने के लिये ही शास्त्राज्ञानुसार वर्ण परावर्त्तन किया है लेकिन क्या करे ? कल के प्रोथमीरों को रक्षा को भस्मी समझाने का और कारण को पुष्पवती का कारण समझने का कल में आया है. पृष्ठ-३२. उ०- शासन को बचाने के लिये नहीं और शास्त्राज्ञानुसार For Private And Personal Use Only
SR No.020446
Book TitleKulingivadanodgar Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandvijay
PublisherK R Oswal
Publication Year1926
Total Pages79
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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