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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आज्ञा मौजूद है, पर जिस कारण को तुम आगे रखकर रंगीन वस्त्र पहिनना चाहते हो उसकी आज्ञा नहीं है। पू०-जिनकल्पिक मुनि जो प्रस्वेद और मत्लाविल वस्त्रवाले होते हैं वे आपके हिसाब से बड़े ही जीवोपघात करनेवाले होंगे ? पृष्ठ-१६. उ०—जिनकल्पिक मुनि अतिशय और पुन्यराशिवाले होने से उनके प्रस्वेद और मलाविल वस्त्रों में नीलफूल आदि की उत्पत्ति नहीं होती । इसलिये उनको वस्त्र धोने की आवश्यकता नहीं पडती । परन्तु गच्छवासी स्थविरकल्पिक साधुओं में वैसे अतिशय और पुन्यराशि का अभाव होने से उनको वर्षाकाल बैठने के पेश्तर और ग्लानावस्था में अनंतकायजीवों की रक्षा के लिये अपने मलिन वस्त्रों को धो लेना चाहिये । देखो ! सूत्र की टीका का पाठ--- ___ गन्छवासिनो हि अप्राप्तवर्षादौ ग्लानावस्थायां वा प्रासुकदकेन यतनया धावनमनुज्ञातं, नतु जिनकल्पिकस्येति । आचारानसूत्र-शीलांकाचार्यटीका, १ श्रु०, ८ अ०, ४ उ०,, जरा आँखे खोल कर देख लो ! टीकाकार महाराजने कैसा उत्तम खुलासा कर दिया है ? इतने पर भी यदि हठाग्रह के वश न देख पडे तो तुम्हारे भाग्य की ही खामी है, इसमें दूसरे किसीका दोष नहीं है । ठीक ही है—जिनके कोर्स में, या भाडेती कोश में केवल अपवाद से वयों की ही भरमार है, उन्हें इन शास्त्रीय बातों को For Private And Personal Use Only
SR No.020446
Book TitleKulingivadanodgar Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandvijay
PublisherK R Oswal
Publication Year1926
Total Pages79
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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