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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस सामुद्रिक शास्त्रका, भविष्य कहनेकी पद्धतिके रूपमें प्राचीन भारतीय विद्यामें स्थान है और उस विषयको प्रतिपादन करनेवाली यह छोटी पुस्तक करलक्षण भारतीय ज्ञानपीठ काशीसे प्रकाशितकी जा रही है। प्राकृत पाठ, संस्कृत छाया तथा हिन्दी शब्दार्थके साथ है और सम्पादक प्रफुल्लकुमार मोदीने यह सब हमारे सामने स्पष्ट रूपसे रखा है । मोदीजी एक बुद्धिमान् नवयुवक विद्वान् हैं और यह संस्करण उनकी भावी योग्यताओंको बतलाता है। अपने पिता प्रो० डा० हीरालाल जैनकी मातहतीमें शिक्षित हुए, इस युवकसे सम्भावना है कि भविष्यमें संस्कृत और प्राकृत साहित्यके अनुसन्धानोंसे, हमें बहुत कुछ दे सकेगा। ___ श्री सेठ शान्तिप्रसाद जेनने प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बहुबिध रूपोंको संसारके सामने रखनेके आदर्श उद्देश्योंसे प्रेरित हो भारतीय ज्ञानपीठको स्थापित किया है । उनकी पत्नी श्रीमती रमारानी भी उनके उत्साह और उदारताके अनुरूप ही संस्थाके प्रकाशनोंमें तीव्र अभिरुचि रखती हैं। वे दोनों हमारे अति धन्यवादके पात्र हैं। हमें अनेक आशाएँ हैं कि यह संस्था न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमारजी शास्त्रीके उत्साहपूर्ण प्रबन्धके नीचे अनेक विद्वानोंके सक्रिय सहयोगसे बहुतसे योग्य प्रकाशन सामने लाएगी और इस तरह हमारे देशकी सांस्कृतिक परम्पराको और समृद्ध करेगी। कोल्हापुर आ० ने० उपाध्ये १५ अगस्त १९४७ प्रकाशन-व्यय २००) छपाई ६०) कागज १०) बाइंडिग ३०) फुटकर १००) कार्यालय व्यवस्था, प्रूफ संशोधन आदि २००) कमीशन, विज्ञापन १००) भेंट आलोचना कुल ७००) ६००) प्रति छपी, लागत एक प्रति १%)। For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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