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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं १३ ( ३६ ) काणाङगुलि-अधस्तनरेखाफलम्काणंगुलीइ हिढे रेहाश्रो जस्स जत्तिश्रा इंति। तत्तियमित्ता महिला महिलाण वि तत्तिश्रा पुरिसा॥ कनिष्ठाङ्गुलेः अधः रेखाः यस्य यावन्त्यः भवन्ति । तावन्मात्राः वनिताः वनितानामपि तावन्तः पुरुषाः ॥ कनिष्ठिका अंगुलीके नीचे जिसके जितनी रेखाएँ हों उसके उतनी ही स्त्रियां होती हैं और स्त्रियोंके उतने ही पुरुष होते हैं। ( ३७ ) दीहाहि कोमारी धरिया फलिपाहि तो विश्राणिजा । सुण्णाहि असोहग्गं फुडिअाहिं विइ हवे जाण ॥ दीर्घाभिः कुमारिका धृता फलिताभिः विजानीयात् । । शून्याभिः असौभाग्यं स्फुटिताभिः व्रती भवेत् जानीहि ॥ यदि ये रेखाएं दीर्घ हों तो जानो कुमारी-पाणिग्रहण हो, यदि फलित हों तो भी यह फल जानो। यदि शून्य हों तो असौभाग्य जानो और फूटी हों तो व्रती होना जानो। ( ३८ ) काण-अगुलिमूलरेखाफलम्काणंगुलिमूलोवरि रेहाश्रो जस्स तिषिण चत्तारि । सो होइ पुण्णभागी रायाईणं पि णमणिज्जो ॥ ___ कनिष्ठाङ्गुलिमूलोपरि रेखाः यस्य तिस्रः चतस्रः । स भवति पुण्यभागी राजादीनामपि नमनीयः ॥ कनिष्ठिका अंगुलीके मूलमें जिसके तीन या चार रेखाएं हों वह बड़ा पुण्यभागी होता है, राजा आदिक भी उसे नमस्कार करते हैं । ( ३९ ) जइ ताउ दाहिणकरे आमूलाग्रो वि होइ जणपुज्जो। अह वामे तो पच्छा सव्वेसि सेवणिजइयो॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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