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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org करलक्खणं यदि कनिष्ठिका और अनामिकामें सघन अन्तर हो तो बुढ़ापेमें सुख होवे । यदि सभी अंगुलियां सघन हों तो मनुष्य सदा सुखी और धन-सम्पन्न होता है। अगुल्यन्तरफले पर्वणां फलम्सम्मसंगुलिपव्वो पुरिसो धणवं सुही सया होइ। जइ सो अमंसपव्वो ता तस्स सिरी ण संभवइ ॥ समांसाङ्गुलिपर्वा पुरुषः धनवान् सुखी सदा भवति । यदि स अमांसपर्वा तर्हि तस्य श्रीः न संभवति ॥ जिस पुरुषकी अंगुलियोंके पर्व मांसल हों वह धनवान् और सदा सुखी होता है। यदि उसके पर्व मांसल न हों तो उसके धन नहीं होता। वराहमिहिरके अनुसार जिनकी अंगुलियोंके पर्व ( पोर ) लम्बे हों वे सौभाग्यवान् और दीर्घायु होते हैं । ( बृहत्संहिता ६७, ४२ ) मणिबन्धविषये गाथापञ्चकम्धणकणगरयणजुत्तो मणिबंधे जस्स तिरिण रेहायो। . बाहरणविविहभागी पच्छा भदं च सो लहइ ॥ धनकनकरत्नयुक्तः मणिबन्धे यस्य तिस्रः रेखाः । आभरणविविधभागी पश्चात् भद्रं च स लभते ॥ जिसके मणिबंध ( कलाई ) पर तीन रेखाएं हों उसे धान्य, सुवर्ण और रत्नोंकी प्राप्ति होती है, उसे नाना प्रकारके आभूषणोंका उपभोग मिलता है तथा अन्तमें उसका कल्याण होता है। ( ८ ) महुपिंगलाहि सुहिया अविणवया हवंति रत्ताहिं। सुहमाहिं मेहावी सुभगा य समत्तमूलाहि ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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