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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ३२ ।। www.kobatrth.org - तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय मंति- महामंति - गणग - - दोवारिय अमच्च - चेड पीढमद्द - नगर-निगम - सिठ्ठि - सेणावइ - सत्थवाह - दूय-संधिवाल-सद्धि संपरिवुडे, धवलमहा - मेह - निग्गए इव गह- गण - दिप्पंत - रिक्ख-तारा-गणाण मज्झे ससिव्व पियदंसणे, नरवई नरिंदे नर - वसहे नर सीहे अब्भहिय-रायतेय-लच्छीए दिप्पमाणे मज्जण घराओ डिनिक्ख ॥ सू. ६२ ॥ मज्जणघराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासांसि पुरत्थाभिमुहे निसीअइ ॥ सू. ६३ || निसीहत्ता अप्पणो उत्तर - पुरत्थिमे दिसीभाएअठ्ठ भद्दासणाई सेयवत्थ पच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थय| कय- मंगलो - वयाराइं रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूर- सामंते नाणा - मणि - रयण-मंडियं, अहिअ - पिच्छणिज्जं, महग्घ - वर - पट्ट - णुग्गयं, सण्ह - पट्ट - भत्ति-सय-चित्त- ताणं, ईहा -मिय-उसभ - तुरग - नर-मगर - विहग-वालग - किंनर - रुरु - सरभ - चमर- कजरवणलय - पउमलय-भत्तिचितं अभितरिअं जवणिअं अंछावेइ, अंछावित्ता नाणा - मणि - रयण - भत्तिचित्तं अत्थ-रय - मिउ- मसूर - गोत्थयं सेयवत्थ - पच्चुत्थुयं सुमउयं अंग - सुह-फरिसगं विसिठ्ठ तिसलाए खत्तियाणीए भद्दासणं रयावेइ, रयावित्ता ॥ ३२ ॥ 蹾 For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir - मूळ
SR No.020430
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages121
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size9 MB
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