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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ ४ ॥ 蒙蒙蒙蒙蒙蒙激賺賺賺賺賺賺語治療带岛总裁路諒琳琳 सूत्रोना तेमज उत्तराध्ययन, श्रीआचारांग सूत्रना योगवहन करवा पूर्वक अधिकारी छे. श्रावक श्राविकाओ उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवैकालिकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यतना श्रुतना अधिकारी छे. आम आगमश्र |तना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निर्मल बनावे छे अने योग्यता मुजब वाचना, धर्मकथा द्वारा जिणवाणीनुं पान करावी साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे. ४५ आगमसूत्रो ६ विभागोमा वहेंचायेल छे. (१) अंगसूत्रो ११ (२) उपांगसूत्रो १२ (३) पयन्नासूत्रो-१० (४) छेदसूत्रो-६ (५) मलसूत्रो-४ (६) चूलिकासूत्रो-२, आ सूत्रोनु स्वाध्याय आदि अध्ययन वधे ते माटे उपयोगी बने ते रीते ४५ मूल सूत्रो श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्रीसंघमां सळंग मुद्रित अनुकूलता थाय ते माटे शक्य प्रयत्न संशोधन करीने प्रगट करवामां आव्या छे. आ श्री कल्पसूत्रना कर्त्ता चौदपूर्वधर श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामीजी छे. आ सूत्रना संपादनमा श्री लीबडी जैन भंडार, श्री खंभात शांतिनाथजी ताडपत्रीय ज्ञानभंडारनी हस्त प्रतो तेमज जैन आत्मानंद सभा, श्री देवचंद लालभाइ पुस्तकोद्धारक फंड, पं. मफतलाल झवेरचंद, श्रावक भीमसिंह माणेक प्रकाशित सूत्रो तथा टीकाओनो। उपयोग कर्यो छे. टीकाओमा प. उ. श्री विनय विजयजी गणिवर कृत सुबोधिका प. उ. श्री धर्मसागरजी म. कृत किरणावली, पू. उ. श्री लक्ष्मीवल्लभ गणिकृत कल्पद्रुमकलिका पं. श्री संघविजयजी गणिकृत प्रदिपिका, पं. श्री जयसोमगणीकृत दीपिका आदिनो उपयोग कर्यो छे. टीकाओ आदिमा रहेला पाठांतरो मेलवीने मूलपाठ जोडे कौशमां आपेला छे. श्री श्रमण संघमां आगमो कंठस्थ करवामां, स्वाध्याय करवामां, विस्तृत टीकाओना वांचन पछी मूलसूत्रोनुं पुनरावर्तन करवामां, मूल सूत्रोना आ संयुक्त संपादनथी घणी अनूकुलता रहेशे. अने एथी होशे होशे उत्साही मुनि भगवंतो सत्रो कंठस्थ करीने। आगम श्रुतने धारण करवा माटे पण समर्थ बनी शकशे. २, ५, के १०, २० सूत्र कंठस्थ करनारा पुरतो प्रयत्न करे तो लगभग एक | 發發發發發發發發發發蒸發殘殘錢强强强强篮發發發發 For Private and Personal Use Only
SR No.020430
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages121
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size9 MB
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