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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी दूसरा व्याख्यान अनुवाद 1133।। 5 तीसरे वलय में उतने ही अंगरक्षक देवों के सोलह हजार कमल हैं । यह तीसरा वलय । चौथे वलय में अभ्यन्तर 5 आभियोगिक देवों के बत्तीस लाख कमल हैं । पांचवें वलय में मध्यम आभियोगिक देवों के चालीस लाख कमल हैं । यह पंचम वलय । छठे वलय में बाह्य आभियोगिक देवताओं के अड़तालीस लाख कमल हैं । छट्ठा वलय । मूल कमल के साथ सर्व कमलों की संख्या एक कोटी, बीस लाख, पचास हजार, एक सौ बीस होती है । इस प्रकार के कमल स्थान में रही हुई लक्ष्मीदेवी का दिग्गजेंद्रोंद्वारा अभिषेक होता देखती है । यहां पर कुछ श्रीदेवी के रूप का वर्णन लिखते हैं। LF अच्छे प्रकार से रक्खे हुए सुवर्ण कछुवे के समान बीच से कुछ उन्नत और इर्दगिर्द नीचे उसके चरण हैं | नख उन्नत, सुकुमार, स्निग्ध तथा लाल हैं । हाथ पैरों की अंगुलियां कमल पत्र के समान कोमल हैं । पेरों की पिंडलियां केले के सुदृश गोल अनुक्रम से नीचे पतली और ऊपर स्थूल होकर शोभायमान हैं । गोड़े गुप्त और हार्थी * की संढ के समान जघाये हैं । कमर में सुवर्ण का कंदोरा है । नाभि से लेकर स्तनों तक सूक्ष्म रोमराजी शोभायमान * है । उसका कटिंप्रदेश मुष्टिग्राह्य और मध्य विभाग तीन बलियों सहित है । उसके अंगोपांग चंद्रकान्तादि मणिमाणिक्यादि रत्नों से जडित सुवर्णमय सर्व आभूषणों से भूषित हैं । स्वर्ण कलश सदृश हृदय स्थल पर उसके स्तनयुगल हारों तथा सुन्दर पुष्पों की मालाओं से शोभित हैं । हृदय में मोतीयों की माला, कंठ में मणिमय सूत्र और * कानों में दो कुंडल हैं। इस प्रकार आभूषणों की शोभासमूह से श्रीदेवी का मुखमंडल अत्यधिक सुन्दर For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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