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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 000000000) सुनकर उस दुरात्माने प्रभु पर तेजोलेश्या छोड़ी । वह लेश्या भगवान को तीन प्रदक्षिणा दे कर वापिस गोशाले के ही शरीर में 5 पर जा घुसी । उससे उसका शरीर दुग्ध हो गया और अनेकविध वेदनायें भोग कर सातवीं रात को मर गया । उस तेजोलेश्या LA के आताप से भगवान को 6 मास तक शौच में खून पड़ने की पीड़ा सहन करनी पड़ी । इस प्रकार जिसका नाम स्मरण करने मात्र से सर्व दुःख उपशान्त हो जाते हैं ऐसे सर्वज्ञ वीरप्रभु को यह उपसर्ग हुआ वह प्रथम आश्चर्य हुआ। (2) गर्भहरण- एक उदर से दूसरे उदर में रखना, यह आज तक किसी भी जिनेश्वर को न हुआ था, किन्तु श्री वीरप्रभु को हुआ यह दूसरा आश्चर्य हुआ । (3) स्त्री तीर्थकर- सदैव पुरुष ही तीर्थकर होते हैं परन्तु इस अवसर्पिणी काल में मिथिला नगरी के स्वामी राजा - कुंभ की पुत्री मल्लि नामक उन्नीसवें तीर्थकर हो कर तीर्थ की प्रवृत्ति कराई । यह तीसरा आश्चर्य हुआ। (4) अभावित पर्षदा- सर्वज्ञ देव की देशना कदापि ऐसी नहीं होती कि जिससे किसी भी प्राणी को बोध न हो, * परन्तु श्री वीरप्रभु को केवलज्ञान होने पर जो प्रथम पर्षदा में उन्होंने देशना दी उससे किसी के भी मन में कुछ व्रत धारण करने का भाव पैदा न हुआ । यह चौथा आश्चर्य हुआ । (5) अपरकंकागमन- एक समय पाण्डव पत्नी द्रोपदी ने वहां आये हुए नारद को असंयत समझ कर सन्मुखX. उठने का सन्मान न दिया। इससे नारद ने कुपित हो द्रोपदी को कष्ट में डालने के लिए धात की खण्ड के 0000000 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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