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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie श्री कल्पसूत्र प्रथम हिन्दी व्याख्यान अनुवाद ||18|| 3 विमानों एवं चौरासी हजार सामानिक देवों-जिन की ऋद्धि इंद्र के समान है-का अधिपति, कर्म पालन करने वाले, जो पूज्य स्थानीय अथवा मंत्री तुल्य देव हैं तथा सोम, यम, वरुण और कुबेर जो चार लोकपाल हैं. एवं पद्मा, शिवा, शची, अंजू, अमला, अप्सरा, नमिका और रोहिणी नामवाली अपनी अग्रमहीपी-रानियां जिनका प्रत्येक का सोलह-सोलह हजार परिवार है उन सब के अधिपतिपन को पालन करता हुआ, तथा बाह्य, मध्यम और अभ्यन्तर पर्षदा के आधिपत्य, तथा सात सैन्य का आधिपत्य, चारों दिशाओं में चौरासी हजार आत्मरक्षक देवों के आधिपत्य कर्म को करता हुआ और अनेक प्रकार के दिव्य नाटकों को देखता हुआ इंद्र अपनी सभा में ग्र विराजमान है । उस समय वह अपने विशाल अवधिज्ञान से सम्पूर्ण जंबूद्वीप को देख रहा था । भगवंत महावीर , प्रभु को गर्भ में अवतरे देख इंद्र को अत्यन्त हर्ष हुआ । अति हर्ष के आवेश से मेघधाराहत विकसित कदंब पुष्प . के समान रोमराई जिसकी विकस्वर हो गई हैं. ऐसा हो कर सिंहासन से उठ कर पादपीठ पर पैर रख कर नीचे उतरता है, नीचे उतर कर पादुका छोडकर प्रभु के सन्मुख उस दिशा में सात-आठ कदम चल कर एक उत्तरासन 4A कर हाथ जोड कर घुटने को ऊपर रख कर और दाहिने को पृथ्वी पर टेक कर तीन दफा मस्तक झुका कर अंजलि । करके नाथ को नमस्कार करता है याने शक्रस्तव पढ़ता है । _ नमुत्थुणं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयं संबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाण, * पुरिसवरपुंडरीआणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगणाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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