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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रथम श्री कल्पसूत्र हिन्दी व्याख्यान अनुवाद 111511 ॐदक्ष और सदैव सरलता से वर्तने वाला मनुष्य मानव योनि में से आया है और फिर भी वह मनुष्य योनि में ही जायगा-यह समझना योग्य है । कपट, लोभ, अति भूख, आलस्य बहुत आहार करना-इत्यादि चेष्टाओं से मनुष्य सूचित करता है कि वह पशु योनि से आया है और पशु योनि में ही जायगा । जो मनुष्य अति कामी, स्वजनों का द्वेषी, सदैव दुर्वचन बोलने वाला और मूर्वजनों की संगत करनेवाला होता है वह अपने नरक के आगमन को और नरक में ही जाने को सूचित करता है । पुरूषों के शरीर में यदि दक्षिण भाग में आवर्त हो तो वह श्रेष्ठ 1. फलदायक होता है, बांये हो तो निन्दनीय समझना चाहिए और यदि अन्य किसी भाग में हो तो वह मध्यम फल, प्रदेता हैं । जिस मनुष्य के हाथ में बिलकुल कम रेखा हों या एकदम अधिक रेखायें हों तो वह निःसंदेह दुःखी होता है । जिस पुरूष की अनामिका अर्थात् अन्तिम अंगुली से पहली अंगुली की अन्तिम रेखा से कनिष्ठा अंगली यदि कुछ अधिक हो तो उस पुरूष को धन की वृद्धि होती है और मौसाल पक्ष अधिक होता है । मणिबन्ध से जो रेखा चलती है वह पिता की रेखा कहलाती है और करभ से कनिष्ठा अंगुली के मूल की ओर से जो दो रेखाएं चलती हैं वे वैभव और आयु की होती हैं । वे तीनों ही रेखायें तर्जनी अंगुली और अंगूठे के बीच जा मिलती हैं । जिसके ये तीनों रेखायें सम्पूर्ण और दोषवर्जित हों वह मनुष्य गोत्र, कुल, धन धान्य और आयुष्य का सम्पूर्ण सुख भोगता है । आयु की रेखा जितनी अंगुलीओं को उल्लघंन कर आगे चली जाय, उतने ही पच्चीस-पच्चीस वर्ष की आयु 8 अधिक समझना चाहिये । यदि दाहिने हाथ के अंगूठे में यव का चिन्ह हो तो विद्या, वैभव और ख्याति र For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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