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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 000) 8 विशेष समझ लेना चाहिये कि जिस तीर्थकर का जीव स्वर्ग से आता है उसकी माता उसके गर्भ में आने पर विमान देखती है और जो जीव नरक में से निकल कर तीर्थकर होता है उसकी माता उसके गर्भ में आने पर स्वप्न में भवन यानि सुन्दर मकान देखती हैं । चौदह स्वप्न देख कर देवानन्दा को बड़ा संतोष हुआ । वह चित्त में आनन्द को धारण करती हुई हृदय में *प्रीतिवाली, मन में तुष्टिवाली, हर्ष से विस्तृत हृदय वाली, मेघ की जलधारा से सीचिंत कदंब पुष्प के समान * विकसित रोमराय वाली होकर उन प्रशिष्त स्वप्नों का अच्छी तरह स्मरण करने लगा स्वप्नों को अच्छी तरह स्मरण करने लगी । स्मरण कर अपनी शय्या में से उठ कर मानसिक उत्कंठा सहित और चापल्य रहित गति से, स्खलना अर्थात् विलम्ब को छोड़ कर और राजहंस के समान गति से जहां पर ऋषभदत ब्राह्मण सो रहा था वहां आकर ऋषभदत्त ब्राह्मण को जय विजय कर मीठी वाणी से जगाती है और स्वयं एक भद्रासन पर बैठ जाती है । फिर वह देवानन्दा ब्राह्मणी स्वस्थ होकर मस्तक पर अंजलि कर अर्थात् हाथ जोड़ कर विनयपूर्वक कहने लगी कि 'हे Lर देवानुप्रिय-देवताओं के प्यारे ! आज जब मैं अल्प निद्रा में थी तब गज, वृषभ आदि उत्तम चौदह स्वप्नों को देखकर जाग उठी । इन कल्याणकारी स्वप्नों का मुझे क्या वृत्तिविशेष फल होगा ? (यहां पर फल से पुत्रादि और वृत्ति से Kजीवनोपाय समझना) देवानन्दा के मुख से उक्त वचन को सुन कर मन में अवधारण करता हुआ ऋषभदत्त ब्राह्मण हर्षित हो कर मेध की जलधारा से सिंचित हुए कदंब पुष्प के समान विकसित रोमराजीवाला हो कर TOP0 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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