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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 11146 || 雜雜0000 www.kobatirth.org देखने में आता है, तब ऐसा अर्थ करना चाहिये बीमार के भोजन किये बाद जो बचे वह आप खाना और दूसरों को देना, ऐसा गृहस्थ के कहने पर अधिक लेना कल्पता है । परन्तु बीमार की निश्राय से लोलुपता से अपने लिए लेना नहीं कल्पता । बीमार के लिए लाया हुआ आहारादि मंडली में न लाना चाहिए ।18। सातवां चातुर्मास रहे साधुओं को उस प्रकार के अनिन्दनीय घर जो कि उन्होंने या दूसरों ने श्रावक किये हों, प्रत्ययवन्त या प्रीति पैदा करनेवाले हों या दान देने में स्थिरवाले हों, यहां मुझे निश्चय ही मिलेगा ऐसे • विश्वासवाले हों, जहां सर्व मुनियों का प्रवेश सम्मत हो, जिन्हे बहुत साधु सम्मत हों, या जहां घर के बहुत . से मनुष्यों को साधु सम्मत हों, तथा जहां दान देने की आज्ञा दी हुई हो, या सब साधु समान है ऐसा समझ कर जहां छोटा शिष्य भी इष्ट हो, परन्तु मुख देखकर तिलक न किया जाता हो, वैसे घरों में आवश्यकीय वस्तु के लिए बिन देखे ऐसा कहना नहीं कल्पता कि हे आयुष्मन् ! यह वस्तु है ? इस तरह बिन देखी वस्तु को पूछना नहीं कल्पता । शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवान् ! ऐसा विधान किस लिए ? गुरू कहते हैं-श्रद्धावान् गृहस्थ उस वस्तु को मूल्य देकर लावे यदि मूल्य से भी न मिले तो वह अधिक श्रद्धा होने से चोरी भी करे । कृपण घर बिन देखी वस्तु मांगने में भी दोष नहीं है ।19। के 筑 आठवां चातुर्मास रहे हुए सदैव एकासना करनेवाले साधु को सूत्रपौरूषी किये बाद काल में एक दफा गोचरी जाना गृहस्थ के घर कल्पता है अर्थात् भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में जाना आना कल्पता है । परन्तु दूसरी For Private and Personal Use Only 雜雜00 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नौवा व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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