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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ भादवा सुदी पंचमी को पर्युषणा है' इत्यादि पर्युषणाकल्प की चूर्णि में है । तथा शालिवाहन राजा जो श्रावक था वह कालकसूरिजी का आया सुन कर उनके सन्मुख जाने को निकला और श्रमण संघ भी निकला । बड़े आडम्बर से कालकसूरिजी ने नगर प्रवेश किया और प्रवेश कर के कहा कि भाद्रपद पंचमी के पर्युषणा करना है, श्रमण संघ ने यह मंजूर किया, तब राजा ने कहा-उस दिन लोकानुवृत्ति से इंद्र महोत्सव होने के कारण पर्युषणा नहीं में हो सकेगी, अतः छठके दिन पर्युषणा करें । आचार्य ने कहा-पंचमी को उल्लंघन न करना चाहिये । फिर राजा ने कहा-तो फिर चौथ के दिन पर्युषणा करें, तब आचार्य ने कहा कि ऐसा ही हो, फिर चौथ को मन पर्युषणा की । इस प्रकार युगप्रधान ने कारण से चौथ की प्रवृत्ति की और वह सर्व मुनियों को मान्य है। इत्यादि निशीथचूर्णि के दशवें उद्देशे में कहा है । इस तरह जहां कहीं पर पर्युषणा का निरूपण आवे वहां भाद्रपद सम्बन्धी ही समझना चाहिये । किसी भी आगम में 'भदवय सुद्धपंचमीए पज्जोसविज्ज इति' अर्थात् भाद्रव सुदी पंचमी को पर्युषणा करना इस पाठ के समान अभिवर्धित वर्ष में श्रावण सुदि पंचमी को पर्युषणा करना ऐसा पाठ उपलब्ध नहीं होता । इस लिए कार्तिक मास से प्रतिबद्ध पर्युषण करने में अधिक मास प्रमाण नहीं है । इस लिए भाई ! कदाग्रह को छोड़ दे । क्या अधिक मास को कौवा खा गया ? क्या उस मास में पाप नहीं लगता था उस में भूख नहीं लगती ? इत्यादि उपहास्य कर के तू अपना पागलपन प्रगट न कर । क्यों कि तू भी अधिक मास होने पर For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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