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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी प्रथम व्याख्यान अनुवाद |11111 ऐसे छोटे बालक ने अट्ठमतप किस तरह किया ? धरणेद्र बोला-राजन् ! पूर्वभव में यह बालक एक बनिये का पुत्र था - बालकपन में ही इसकी माता की मृत्यु हो गई थी, इससे इसकी सौतेली माता इसे अत्यन्त सताया करती थी। इसने दुःखित हो अपनी सौतेली माता का दुःख अपने मित्र के सामने कहा । मित्र बोला कि भाई । तुमने पूर्वभव में कुछ तप नहीं किया इसी कारण तुम्हारा पराभव होता है । उस दिन से वह कुछ तप करने लगा । अब के मैं आगामी पर्युषणा में अट्ठम तप करूंगा ऐसा निश्चय करके वह एक दिन घास की कुटिया में सो गया । अवसर देख कर उसकी सौतेली माता ने उस कुटिया में एक अग्नि की चिनगारी डाल दी, जरासी देर में कुटिया जल कर राख हो गई; वह भी मरा और उस अट्टम तप के ध्यान से वह इस श्रीकांत शेठ का पुत्र हुआ है । इस कारण इसने पूर्वभव में चिन्तन किया अट्टम तप अभी बाल्यावस्था में पूर्ण किया है । यह महापुरुष लघुकर्मी होने से इसी भव में मोक्ष प्राप्त करेगा इसे यत्नपूर्वक पालने करने योग्य है । इससे तुम्हें भी बड़ा लाभ होगा । यों कह कर धरणेन्द्र उसके गले में हार डाल कर स्वस्थान पर चला गया । फिर उसके स्वजनों ने श्रीकांत सेठ का मृतकार्य किया और उसके पुत्र का नाम 'नागकेतु' रक्खा ।। अनुक्रम से वह बाल्यावस्था से ही जितेंद्रिय परम श्रावक बना । एक दिन विजयसेन राजा ने किसी एक मनुष्य & को चोर न होने पर भी चोरी के कलंक से मार डाला था । वह मरकर व्यन्तर देव हुआ और पूर्व वैर से उसने सारे नगर को नष्ट कर डालने के लिए आकाश में एक बड़ी विशाल शिला रची । राजा को लात मार For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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