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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 1114011 0500405004050040 www.kobatirth.org पालित को वन्दन करता हूं। क्षमा के सागर, धीर और जो ग्रीष्मकाल के प्रथम मास में फागन के शुक्ल पक्ष में स्वर्ग गये ऐसे काश्यप गोत्रीय आर्यहस्ती को मैं वन्दन करता हूं । शीललब्धिसंपन्न और जिस के दीक्षा महोत्सव में जिस पर देवों ने छत्र धारण किया था ऐसे सुव्रत गोत्रवाले आर्यधर्म को वन्दन करता हूं । काश्यप गोत्रीय आर्यहस्ती को तथा मोक्षसाधक आर्यधर्म को नमन करता हूं । काश्यप गोत्रीय आर्यसिंह को नमन करता हूं । उन्हें मस्तक से नमन कर स्थिर सत्व, चारित्र और ज्ञान से संपन्न गौतम गोत्रीय स्थविर आर्य जम्बू को वन्दन करता हूं। सरलता से संयुक्त तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र से संपन्न ऐसे काश्यप गोत्रीय स्थविर नंदित को भी नमन करता हूं। फिर स्थिर चारित्रवाले तथा उत्तम सम्यक्रव एवं सत्व से भूषित माटर गोत्रीय देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूं। अनुयोग धारक धीर मतिसागर और महासत्वशाली वच्छगोत्रीय स्थिरगुप्त क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूं। ज्ञान, दर्शन और चरित्र में सुस्थित गुणवन्त ऐसे स्थविर कुमारधर्म गणि को वन्दन करता हूं । सूत्रार्थरूप रत्नों से भरे हुए तथा क्षमा, दम, मार्दवादि गुणों से संपन्न ऐसे काश्यप गोत्रीय देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण को वन्दन करता हूं । , For Private and Personal Use Only 第00 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आठवां व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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