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________________ Shri Maharjan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyarmandie गण कहते हैं और उस गण के नायक-सूरि वे गणधर कहलाते हैं । वे श्री पार्श्वनाथ के आठ गणधर थे. परन्तुआवश्यक सूत्र में दश गण और दश गणधर कहे हुए हैं । स्थानांग सूत्र में दो अल्पायुषी होने के कारण वे नहीं कथन किये, ऐसा टिप्पण में बतलाया है । उन आठों के नाम ये थे-शुभ, आर्यघोष, वशिष्ट, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरभद्र और यशस्वी । पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के आर्यदिन्न आदि सोलह हजार (16000) साधुओं की उत्कृष्ट साधुसपंदा पहुई । पुष्पचूला प्रमुख अड़तीस हजार (38000) साध्वियों की उत्कृष्ट साध्वीसंपदा हुई । सुव्रत प्रमुख एक लाख चोसठ हजार (164000) श्रावकों की उत्कृष्ट श्रावकसंपदा हुई । सुनन्दा प्रमुख तीन लाख सत्ताइस हजार (327000) श्राविकाओं की उत्कृष्ट श्राविकासंपदा हुई । केवली न होने पर भी केवली के समान साढ़े तीन सौ (350) ऐसे चौदह * पूर्वियों की उत्कृष्ट संपदा हुई | चौदह सौ (1400) अवधि ज्ञानियों की, एक हजार (1000) केवलज्ञानियों की, ग्यारह सौ (1100) वैक्रिय लब्धिधारी मुनियों की और छहसौ (600) मनःपर्याय ज्ञानवाले मुनियों की संपदा हई । एवं एक हजार (1000) साधु मोक्ष गये और दो हजार (2000) साध्वियां मुक्ति गई । आठसौ (800) विपलमतियों की. छह सौ (600) वादियों की तथा बारह सौ (1200) अनुत्तर विमान में पैदा होनेवाले मुनियों की संपदा हुई । पुरुष प्रधान श्री पार्श्वनाथ प्रभु की दो प्रकार की अन्तगड़ भूमि हुई । पहली युगान्तकृत् भूमि और दूसरी For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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