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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatrhary Acharya Shri Kalassagarsen Gyarmandie प्रथम वाचना कराई, उस आनन्दपुर की स्तुति कौन नहीं करता ?' 'वल्लहीपुरंमि नयरे' इत्यादि वचन से पुस्तक लेखनकाल तो उपरोक्त प्रसिद्ध ही है परन्तु तत्व केवली जाने । इति श्रीवीरचरित्र । श्री कल्पसूत्र हिन्दी सातवां व्याख्यान अनुवाद ||10011 सीसी सातवां व्याख्यान. श्री पार्श्वनाथ भगवान् का जीवन चरित्र । अब जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वाचना द्वारा श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का चरित्र कहते हैं। 5 उस काल और उस समय में पुरूषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु के पांचों कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हए । विशाखा नक्षत्र में प्रभु स्वर्ग से च्यवकर माता के गर्भ में उत्पन्न हुए, विशाखा नक्षत्र में प्रभु का जन्म हुआ. n विशाखा नक्षत्र में ही घर का त्याग कर पंच मुष्टि लोच करके प्रभु ने दीक्षा ग्रहण की । विशाखा नक्षत्र में ही प्रभु - अनन्त, अनुपम, नियाघात, निरावरण, समन और परिपूर्ण केवलज्ञान एवं केवलदर्शन पाये और विशाखा नक्षत्र * में ही प्रभु मोक्ष सिधाए । 慢慢變%使 ) For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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