________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
卐
छट्टा
व्याख्यान
अनुवाद
118111
警%
भगवान का विलक्षण अभिग्रह द्रव्य से छाज (सूपडा) के कौने में पड़े हुए उड़द के बांकले हों, क्षेत्र से देनेवाले के पैर देहली के अन्दर और एक पैर देहली से बाहर रखकर खड़ी हों, काल से जब सब भिक्षाचर निवृत्त हो चुके हों, भाव से राजपुत्री पर दासपन प्राप्त हुआ हो, उसका मस्तक मुंडित हुआ हो, पैरों मे बेड़ी पड़ी हों, रुदन करती हो और जिसे अट्ठम का तप भी हो यदि ऐसी कोई स्त्री आहार देगी तो मैं आहार ग्रहण करूंगा । ऐसा घोर अभिग्रह लेकर प्रभु रोज भिक्षा के लिए जाते हैं परन्तु अमात्यादियों के उपाय करने पर भी अभिग्रह पूर्ण नहीं होता।
उस वक्त शतानिक राजा ने चंपानगरी का भंग किया, वहां के दधिवाहन राजा की धारिणी नामा रानी और उसकी पुत्री वसुमती इन दोनों को किसी एक सुभटने कैद कर लिया । धारिणी को जब उसने यह कहा कि तुझे मैं अपनी पत्नी बनाऊंगा तब वह तो जीभ को चबाकर मुत्यु को प्राप्त हो गई, परन्तु वसुमती की पुत्री कह आश्वासन दे कौशाम्बी में लाकर चौराहे में रख बेचनी शुरू की । वहां के धनावह नामक सेठ ने उसे मोल खरीद कर और चंदना नाम रखकर पुत्रीतया रक्खी । एक दिन चंदना सेठ के पैर धुला रही थी, उस वक्त 44 उसकी चौटी पृथ्वी पर लटकती थी, सेठ ने अपने हाथ से उठाकर उसके केश ठीक कर दिये । यह देख मूलानामा सेठानी ने विचारा कि मैं अब बूढी होने आई हूं इस लिए यह युवती बालिका इस घर की सेठानी बनेगी | इस विचार से उसने चंदना का मस्तक मुंडाकर, पैरों में बेड़ी डालकर, उसे गुप्त स्थान में ताले के अन्दर
L
0%
For Private and Personal Use Only