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पड़कर उठा था, उसी दिन औजार लेकर शाला में आया, वहां प्रभु को देख अपशकुन बुद्धि से घण उठाकर उन्हें 5 मारने को लपका तब अवधिज्ञान से जान कर इंद्र ने तुरंत वहां आकर उसी घण से लुहार को मार डाला । वहां
से प्रभु सामाक सन्निवेश में गये । वहां उद्यान मे विभेलक यक्ष ने प्रभु की महिमा की । वहां से शालीशीर्ष नामक ग्राम के उद्यान में माह मास में ध्यानस्थ रहे हए प्रभु को त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में अपमानित हुई स्त्री जो व्यन्तरी हुई थी वह तापसीका रूप धारण कर जल से भरी हुई जटाओं द्वारा अन्य से सहन न हो सके ऐसा शीत उपसर्ग करने लगी । परन्तु फिर भी प्रभु को निश्चल देख कर शान्त हो उनकी स्तुति करने लगी । छठ के तप द्वारा उपसर्ग को सहन करते हुए और विशुद्ध होते हुए प्रभु को उस वक्त लोकावधि ज्ञान उत्पन्न हुआ।
छट्टा चौमासा - भगवान ने भद्रिकार नगरी में किया । उस में चौमासी तप किया अर्थात् लगातार चार* महिने की तपश्चर्या की । उस समय उन्होंने अनेक प्रकार के अभिग्रह धारण किये । अब छः मास के बाद फिर * से गोशाला आ मिला । प्रभु बाहर के भाग में पारणा कर फिर ऋतुबद्ध मगध भूमि में उपसर्ग रहित विचरे ।
सातवां चौमासा - भगवान आलंभिका में बिराजे और चौमासी तप किया । बाद में पारणा कर कुण्डग नामा सन्निवेश में ध्यानस्थज्ञ हो वासदेव के चैत्य में रहे । वहां गोशाला भी वासुदेव की मूर्ति से परामुख हो मुख प्रति अधिष्टान करके खड़ा रहा, इस से लोगों ने उसे खूब पीटा । वहां से प्रभु मर्दन नामक गाम मे जाकर
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