SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 05054050010 www.kobatirth.org कर प्रभु के पास आया तब सिद्धार्थ ने उसे सब वृत्तान्त सुनाया । विश्वास करने के लिए उसने वमन किया, सही मालूम होने से क्रोधित हो उसका घर जलाने को चल पड़ा । घर न मिलने से प्रभु के नाम से वह मुहल्ला ही जला दिया। वहां से प्रभु हरिद्र सन्निवेश से बाहर हरिद्र वृक्ष के नीचे ध्यानमुद्रा में रहे। वहां ही कितने एक राहगीर ठहरे हुए थे, उन्हों ने प्रभु के पैरों को चुल्हा बनाकर आग जला कर उस पर खीर पकाई । प्रभु ध्यान मुद्रा में अचल रहने से उनके पैर जल गये। यह देख कर गोशाला वहां से भाग गया। वहां से प्रभु मंगलानामा गांव में गये और वासुदेव के मंदिर में ध्यान लगा कर रहे। वहां बालकों को डराने के लिए आंखे फाड़ कर चेष्टा करते हुए देख गोशाला को उनके मां बापों ने खूब पीटा और मुनिपिशाच समझ कर छोड़ दिया । वहां से प्रभु आवर्त ग्राम में बलदेव के मंदिर मे ध्यान मुद्रा से रहे। वहां पर गोशाला बालकों को डराने के लिए मुखविकार करने लगा, उनके मां बापों ने सोचा कि यह पागल है इसको मारने से क्या फायदा ? इसके गुरू को ही मारना चाहिये। यह विचार कर जब वे प्रभु को मारने आये तब तुरन्त ही बलदेव की मूर्ति हल उठाकर सामने हो गई । इस चमत्कार से वे सब के सब प्रभु के चरणों में पड़ गये। वहां से प्रभु चोराक सन्निवेश में पधारे। वहां एक मंडप में भोजन पक रहा था, यह देख गोशाला बारंबार नीचे नमकर देखने लगा, तब उन लोगों ने उसे चोर समझकर पीटा। गोशाला ने क्रोधित हो प्रभु के नाम से उनका मंडप जला दिया। वहां से प्रभु कलम्बुका सन्निवेश प्रति गये। वहां पर मेघ और कालहस्ति नामा दो भाई रहते थे । कालहस्तिने प्रभु को For Private and Personal Use Only 步步糖糖 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy