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________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kalassagarsen Gyarmandie प्रथम श्री कल्पसूत्र हिन्दी व्याख्यान अनुवाद ॐबाईस तीर्थकरों के साधुओं के जैसी ही वहां के तीर्थकरों के साधओं की कल्पव्यवस्था जान लेनी चाहिए । इति दशमः 5 पर्युषणा कल्पः । इस तरह यह दशवां पर्युषणा कल्प समझना । ये उपरोक्त दशकल्प श्री ऋषभदेव और श्री महावीर प्रभु के तीर्थ में नियत हैं और अन्य बाईस तीर्थकरों के तीर्थ में अचेलक, औदेशिक, प्रतिक्रमण, राजपिण्ड, मासकल्प और पर्युषणा ये 6 कल्प अनियत हैं और शेष 4 चार शय्यातर, कृतिकर्म, व्रत और ज्येष्ठ कल्प नियत हैं । यहां पर यदि कोई शंका करे कि सबके लिए एक समान साध्य मोक्षमार्ग में * पहले, अन्तिम और बाईस तीर्थकरों के साधुओं के आचार में भेद क्यों ? इस के समाधान में कहते हैं कि इस में जीव विशेष ही कारण है । श्री ऋषभदेव प्रभु के तीर्थ के जीव सरल स्वभाव वाले और जड़बुद्धि होते हैं । अतः उन्हें धर्म का बोध होना दुर्लभ है, क्योंकि उन में जड़त्व है । श्री वीर प्रभु के तीर्थ के जीव चक्र और जड़ हैं इसलिए उन्हें धर्म का पालन दुष्कर है । श्री अजितनाथ आदि बाईस तीर्थकरों के साधुओं को धर्म का बोध और पालन-ये दोनों ही सुकर हैं, क्योंकि वे सरलस्वभावी और प्राज्ञ होते हैं । इसी कारण उनके आचार में भेद पड़ा है । यहां पर उन के दृष्टांत बतलाते हैं ।।5।। सी000 felam chan000 ऋजु-जड़ पर दृष्टांत (पहिला) प्रथम तीर्थकर के कई-एक साधु शौच आदि से निवृत होकर कुछ देर में आये । उनसे गुरू ने पुछा कि आज इतनी देर कहां हुई ? साधु बोले-स्वामिन् ! मार्ग में एक नट नाच रहा था उसे देखने में देर हो गई । गुरू ने For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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