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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 40 40 500 40 500 40 www.kobatirth.org श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी एक वर्ष और एक मास तक वस्त्रधारी रहे, इसके बाद वस्त्र रहित रहे एवं हाथ में ही आहार करते रहे, प्रभु का वस्त्र रहित होना निम्न प्रकार है । प्रभु के दीक्षा लेने पर एक वर्ष और एक मास बीते बाद दक्षिण वाचाल नामा नगर के पास सुवर्ण बालुका नामा नदी के किनारे कांटों में उलझ कर आधा देवदूष्य वस्त्र गिर जाने पर प्रभु ने सिंहावलोकन से पीछे दृष्टि की। यहां कितने एक कहते हैं कि प्रभु ने ममता से पीछे देखा था । कितनेक कहते है कि वह वस्त्र शुद्ध भूमि पर पडाया शुद्ध पर यह जानने के लिये पीछे देखा था कितने एक कहते हैं कि हमारी संतति में वस्त्र पात्र सुलभ होगा या दुर्लभ यह जानने के लिए पीछे देखा था । कईओं का मत हैं कि वस्त्र कांटों में उलझने से अपना शासन कंटकबहुल होगा यह विचार स्वयं निर्लोभी होने से वह अर्ध वस्त्र उन्होंने फिर वापिस नहीं लिया । 40501 5 40500 वह अर्ध वस्त्र प्रभु के पिता का मित्र एक ब्राह्मण उठा ले गया । आधा वस्त्र प्रभु ने प्रथम ही उसे दे दिया, था, वह वृत्तान्त इस प्रकार है-वह ब्राह्मण दरिद्री था और जब प्रभु ने वर्षीदान दिया तब वह परदेश चला गया हुआ था। दुर्भाग्यवश परदेश से खाली हाथ आया, तब उसकी स्त्री ने तर्जना की कि हे दुर्भाग्यशिरोमणि ! जब श्री वर्धमान ने सुवर्ण की वृष्टि की तब तूं परदेश चला गया और वहां से भी अब खाली हाथ आया ? अतः मेरे सामने से दूर चला जा, मुझे मुख न दिखला अथवा जा अब भी उसी जंगम कल्पवृक्ष के पास जा कर याचना For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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