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________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie ( आर्य ! मेर बैल कहां हैं ? प्रभु न बोले । यह समझ कर कि इन्हें मालूम नहीं है वह जंगल में उन्हें ढूंढ़ने लगा । बैल इधर उधर चर कर थोड़ी सी रात्रि रहने पर प्रभु के पास आ बैठे । रात भर भटक कर ग्वाला भी वहां आया और . बैलों को देख वह विचारने लगा कि इसे खबर थी तथापि मुझे सारी रात भटकाया । इस विचार से क्रोधित हो रस्सा. उठा कर प्रभु को मारने के लिए दौड़ा । उसी वक्त इंद्र ने अवधिज्ञान से जानकर ग्वाले को शिक्षा दी। उस समय इंद्र ने प्रभु से प्रार्थना की-भगवान् ! आपको बहुत उपसर्ग होनेवाले हैं. अतः सेवा करने के लिए मैं आपके पास रहूं तो ठीक है । प्रभुने कहा कि-हे देवेंद्र ! ऐसा कदापि न हुआ, न होता है और न होगा, तीर्थकर किसी देवेंद्र या असुरेन्द्र की सहायता से केवलज्ञान प्राप्त नहीं करते, किन्तु अपने ही पराक्रम से प्राप्त करते हैं । तब इंद्र मरणान्त उपसर्ग टालने के लिए प्रभु की मौसी के पुत्र सिद्धार्थ नामक व्यन्तर देव को प्रभु की सेवा में में छोड़ गया । फिर प्रातःकाल होने पर कोल्लाग नामक सन्निवेश में प्रभु ने बहुलनामा ब्राह्मण के घर पात्र सहित धर्म की प्ररूपणा करनी है यह विचार कर प्रथम पारणा वहां गृहस्थ के पात्र में परमान्न (खीर) से किया । उस समय देवों ने पांच दिव्य प्रगट किये- 1. वस्त्रों की वर्षा की 2, सुगंध जल से पृथ्वी सिंचन की 43. पुष्पवृष्टि की 4. देवदुंदुभि बजाई 5. अहोदानमहोदानं की घोषणा की, बाद साडे बारह करोड सौनया 卐el 6) For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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