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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 4000 4000 4500 40 www.kobatirth.org न आ जावे ! इस प्रकार वर्षीदान देकर प्रभु ने फिर नन्दिवर्धन राजा से कहा- भाई अब आपके कथनानुसार भी समय पूर्ण हो गया है अतः मैं दीक्षा ग्रहण करूंगा। यह सुनकर नन्दीवर्धन राजा ने भी ध्वज, तोरणादि से बाजार तथा कुण्डलपुर नगर को देवलोक के समान सजाया । नन्दिवर्धन राजा और इंद्रादिने सुवर्ण के, चांदी के मणि के सोना चांदी, सौनो रत्नों, सुवर्ण चांदी मणि और मिट्टी और मिट्टी आदि प्रत्येक के एक हजार आठ कलशे और दूसरी भी सब सामग्री तैयार कराई। फिर अच्युतेंद्रादि चौसठ इंद्रों ने आकर भगवान का अभिषेक किया । देवकृत कलशे दिव्य प्रभाव से नन्दिवर्धन राजा के । बनवाये हुए कलशों में प्रविष्ट होने से अत्यन्त शोभते हैं । देवताओं द्वारा क्षीरसमुद्र से लाये हुए पवित्र जल से नन्दिवर्धन राजा ने प्रभु का अभिषेक किया। उस समय इंद्र झारी तथा सीसा (दर्पण) हाथ में लेकर प्रभु सन्मुख खड़े जय जय शब्द बोलते थे । इस प्रकार प्रभु को स्नान कराये बाद गन्धकषाय नामक वस्त्र से उनका शरीर रूक्ष किया और फिर दिव्य चंदन का विलेपन किया । दिव्य पुष्पों की मालायें उनके गले में धारण कराई। जिस के किनारों पर सुवर्ण का काम किया हुआ है ऐसे एक बहुमूल्य श्वेत वस्त्र से प्रभु ने अपने शरीर को ढक लिया। हार से वक्षस्थल को शोभायमान किया, बाजुबन्ध और कंकणों से भुजाओं को सजाया, कर्ण कुण्डलों से गालों को सुशोभित किया । अब श्री नन्दिवर्धन राजा द्वारा बनवाई हुई 40 40 500 40 500 For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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