SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कर तथा सभा के योग्य मांगलिक और शुद्ध वस्त्र पहन कर थोड़े परन्तु कीमती आभूषण धारण कर के शरीर अलंकृत कर प्रभु के माता पिता भोजन के समय भोजनमंडप में आकर आसनों पर बैठते हैं । पूर्वोक्त स्वजनादिक के साथ बैठ ककर भोजन करते हैं । भोजन किये बाद कुल्ला कर ताम्बूलादि से मुखशुद्धि कर के वे बैठक की जगह पर आसनों पर आ बैठे और उन्होंने उन स्वजनादिकों का विशाल पुष्प, वस्त्र, सुगन्ध, माला तथा आभूषणादि से आदर सत्कार किया - है । ऐसा कर के प्रभु के माता पिता ने उन स्वजनादि से कहा कि हे बन्धुगण ! प्रथम भी हमें इस बालक के गर्भ में आने पर यह विचार पैदा हुआ था कि जब से यह बालक गर्भ में आया है तब से हम चांदी, सुवर्ण, धन, धान्य, राज्य तथा द्रव्य एवं अनेक प्रकार के प्रीति सत्कार से अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होते हैं, तथा सीमा मध्यवर्ती राजा भी हमारे वश में - आ गये हैं इस लिए जब यह बालक जन्म लेगा तब इस का इसके योग्य गुणसंपन्न वर्धमान' नाम रक्खेंगे । वह पूर्व ** में उत्पन्न हुई हमारी मनोरथ संपत्ति आज सफल हुई है इस लिए हमारे कुमार का नाम वर्धमान ही समुचित है। काश्यप गोत्रवाले श्रमण भगवन्त श्री महावीरप्रभु के तीन नाम हुए हैं । मातापिता का रक्खा हुआ प्रथम वर्धमान नाम है । तप करने की शक्ति प्रभु में साथ ही उत्पन्न हुई थी इस कारण उनका नाम श्रमण था । तथा भय और भैरव में निष्कंप होने के कारण, जिसमें भय-अकस्मात् बिजली आदि से उत्पन्न हुआ, भैरव सिंहादि से उत्पन्न तथा भूख, प्यासादि बाइस परिसह, देवता संबन्धि चार उपसर्ग जिनके जुदे जुदे सोलह भेद सीसीसी For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy