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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir कल्प समथन ॥२०॥ इत्थंतरम्मि वीरो तेंदूसगकीलणं कुणइ ॥१३।। तेहिं कुमारेहिं समं सोऽवि सुरो डिभरूवयं काउं । कीलइ वीरेण समं जिओ य| लेखशाला। सो भगवया तत्थ ॥१४॥ सो बद्धिउं पवतो वेआलाकारधारओ रुहो। सत्ततलमाणदेहो संजाओ मेसणट्ठाए ।।१५।। जिणनाणवि || नयन पहओ पुट्ठीए बजकढिणमुट्ठीए । सो आराडि काउं भएण ससगुव संकडिओ ॥ १६ ॥ पायडियामररूवो रजियहियओ पणमइ | जिर्णिदं । भणइ तुहं परमेसर! धीर तारिसं चेव ॥१७॥ जारिसर्य सुरवइणा सुरमले पनिअति ताखमसु । मज्झ तुम भेसविओ | परिक्खणत्थं जमेवंति ॥ १८॥ भुजोर खामिय पणनिअ वीरं गओ स सोहम्मं । भयपि गिहे चिट्ठइ विसिट्ठकीलाविणोएणं ।।१९।। चालत्तणेवि सरो पगईए गुरुपरफमो भयवं । वीरुत्ति कयं नाम सकेण य तुडचित्तेणे ॥२०॥ आमलकीक्रीडा ॥ मोहेणऽम्मापियरो जाणित्ता अहियअहवासं तु । पहायं विलितदेहं कयकोउयमंगलं वीरं ॥ २१ ॥ सबालंकारधर सोहणदिवसे कलाण गहणत्थं । कयपूयासकारस्स उवज्झायस्स उवणिति ॥ २॥ इत्थंतरम्मि सको आसणकंपेण संपउत्तोही। चितइ | अहो महंतो मोहो सिद्धत्थरायस्स ॥३॥ तिहिं नाणेहिं समग्गो तित्थयरो सबसस्थतत्तन्नू । जं उवणिजइ पागयजणस्स अच्चप्पविजस्स ॥४॥ विजागहणनिमित्तं इअ चिंतिथ आगओ तहिं तुरिय। उवझायस्स निमित्तं रहए सिंहासणे पवरे ।। ५ ।। तस्सेव |य पचखं वीरकुमारं निवेसइ पहट्ठो। वंदित्तु सत्थलक्रवणमह पुच्छह मउलकरकमलो ॥६॥ भयपि वागरेइ जहडिअमसंकियं | तयं पुट्ठो । उवज्झाओवि पमुइओ निसुणइ परमेण विणएण ॥७। पिच्छ अहो अच्छरिअं बालोऽविहु (सत्थ) पढणरहिओ|वि। सबन्नू हव साहइ जहट्टि सबसस्थत्थं ॥ ८॥ तुद्वा अम्मापियरो एवं नाउं विअकखणं वीरं । सकोवि अ सट्टाणं पदिय बीरं | गओ खिप्पं ॥ ९॥ वीरजिणस्स सगासे अवधारिअसद्दलक्रवणलवेणं । उवझाएण विरइ वागरणं किर य इंदंति ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020428
Book TitleKalp Samarthanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvatanacharya
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1993
Total Pages54
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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