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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 562 कालिदास पर्याय कोश सा दृष्ट इत्याननमुन्नमय्य द्दीसन कण्ठी कथमप्युवाच। 7/85 तब पार्वती जी ने ऊपर मुँह उठाकर, बहुत लजाते हुए किसी-किसी प्रकार इतना कहा-हाँ, देख लिया। आननेन न तु तावदी श्वरश्चक्षुषा चिरमुमामुखं पपौ। 8/80 पार्वती जी के उस मुख को शंकर जी ने अपने मुंह से चूमा नहीं, वरन् बहुत देर तक अपनी आँख से ही उनकी सुन्दरता को पीते रहे। 2. मुख :-[खन्+अच्, डित् धातोः पूर्व मुट् च] मुँह, मुख यः पूरयन्की चक रन्ध्र भागान्दरी मुखोत्येन समीरणेन। 1/8 इस पहाड़ पर ऐसे छेद वाले बाँस बहतायत से होते हैं, जो वायु भर जाने पर बजने लगते हैं। तेषामा विस्मूद ब्रह्मा परिम्लान मुखश्रियाम्। 2/2 जब उदास मुँह वाले देवताओं के सामने ब्रह्मा जी उसी प्रकार प्रकट हुए। लग्नद्विरेफाञ्जन भक्ति चित्रं मुखे मधुश्री स्तिलकं प्रकाश्य। 3/30 भौरे रूपी आँजन से अपने मुँह चीतकर, अपने माथे पर तिलक के फूल का तिलक लगाकर। हिम व्यापाया द्विशदाधराणामापाण्डरीभूत मुखच्छवीनाम्। 3/33 जाडे के बीतने और गर्मी के आ जाने से कोमल ओठों और सुन्दर गोरे मुखों वाली। पुष्पासवाघूर्णितनेत्रशोभि प्रिया मुखं किं पुरुषरश्चुचुम्ब। 3/38 किन्नर लोग गीतों के बीच अपनी प्रियाओं के वे मुख चूमने लगे, जिनके नेत्र फूलों की मदिरा से मतवाले होने के कारण बड़े लुभावने लग रहे थे। कामस्तु बाणा वसरं प्रतीक्ष्य पतंगवद्वह्नि मुखं विविक्षः। 3/64 जैसे काई पतंगा आग में कूदने को उतावला हो, वैसे ही कामदेव ने भी सोचा कि बस बाण छोड़ने का यही ठीक अवसर है। उमामुखे बिम्बफलाधरोष्ठे व्यापारयामास विलोचनानि। 3/67 पार्वती जी के मुख के बिम्बा के समान लाल-लाल ओठों पर, अपनी ललचाई आँखें डालने लगे। तपः परामर्शविवृद्ध मन्योर्धभंग दुष्प्रेक्ष्य मुखस्य तस्य। 3/71 अपने तप में बाधा डालने वाले कामदेव पर महादेव जी को इतना क्रोध आया, कि उनकी चढ़ी भौंहों के बीच में नेत्र देखा नहीं जाता था। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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