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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 550 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश 4. षटपद :- भौंरा । न षट्पदश्रेणिभिरेव पंकजं सशैव लासंगमपि प्रकाशते । 5/9 क्योकि केवल भौंरों से ही कमल अच्छा नहीं लगता, वरन् सेवार से लिपटा होने पर भी वह वैसा ही सजीला लगता है। मन्दरस्य कटकेषु चावसत्पार्वती वदन पद्मषट्पदः । 8/23 पार्वती जी के मुख कमल का रस लेने वाले महादेव जी वहाँ से चलकर मन्दराचल की उस ढाल पर पहुँचे । आविभातचरणाय गृह्णते वारि वारिरुहबद्ध षट्पदम् । 8/33 ये हाथी उस ताल की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, जहाँ कमलों में भौरे बन्द पड़े हैं। षट्पदाय वसतिं ग्रहीष्यते प्रीतिपूर्वमिव दातुमन्तरम् । 8/39 जो भरे बाहर रह गये हों, उन्हें हम प्रेम से भीतर बसा लें। मुक्त षट्पदविराव मंजसा भिद्यते कुमुदमा निबन्धनात् । 8/70 यह जो भौरों की गूँज से कुमुद खिला रहा है, वह ऐसा लगता है, कि इसका पेट फट गया हो । अवतंस 1. अवतंस [अब+तंस्+ घञ्] कर्णफूल । च्युत केशर दूषितेक्षणान्यवतंसोत्पलताडनानि वा । 4/8 जब मैंने अपने कान में पहने हुए कमल से तुम्हें पीटा था, उस समय उसका पराग पड़ जाने से जो तुम्हारी आँखें दुखने लगी थीं । तं मातरे देवमनुब्रजन्त्यः स्ववाहनक्षोभ चलावतंसाः । 7/36 अपने तेजोमण्डल की चमक से गोरे-गोरे मुख वाली सुन्दर माताएँ, जब अपने रथों पर बैठकर पीछे-पीछे चलीं, तो रथों के झटके से उनके कर्णफूल हिलने लगे । वधूमुखं क्लान्तयवावतंसमाचार धूम ग्रहणाद्बभूव । 7 / 82 वधू के मुँह पर पीसने की बूँदें छा गईं, आखों का काला आँजन फैला गया और कानों पर धरे हुए जवे भी धुँधले पड़ गए ।, For Private And Personal Use Only 2. कर्णपूर : - पुं० [कर्ण पूरयति अलकरोतीति । कर्ण+पूर+'करमण्यम्'+इति अण् ] अवतंस, कर्णफूल ।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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