SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 544 कालिदास पर्याय कोश देखो ! पूजनीय सूर्य अस्ताचल को चले, तो संध्या भी उनके पीछे-पीछे चल दी। 10. विवस्वत :-सूर्य, रवि। सप्तर्षि हस्ता व चिता व शेषाण्यधो विवस्वान्परिवर्तमानः। 1/16 सप्तर्षियों के चुनने से जो कमल बच रहते हैं, उन्हें नीचे उदय होने वाला सूर्य अपनी किरणें ऊँची करके खिलाया करता है। पश्य पश्चिम दिगन्तलम्बिना निर्मितं मितकथे विवस्वता। 8/34 हे मिठबोली ! देखो पश्चिम में लटके सूर्य ने। खं हृतातपजलं विवस्वता भाति किंचिदिव शेषवत्सरः। 8/37 देखो ! सूर्य ने आकाश से धूप का पानी खींच लिया है, पश्चिम में कुछ कुछ उजाला रहने से। 11. सविता :-पुं० [सूते लोकादीनिति । सू+तृच्] सूर्य, रवि। विजित्य नेत्र प्रति घातिनी प्रभामनन्य दृष्टिः सवितारमैक्षत। 5/20 चकाचौंध करने वाले सूर्य के प्रकाश को भी जीतकर, वे सूर्य की ओर एकटक होकर देखती रहने लगीं। तथातितप्तं सुवितु गर्भस्तिभिर्मुखं तदीयं कमलश्रियं दधौ। 5/21 इस प्रकार तप करते रहने पर भी उनका मुख सूर्य की किरणों से तपकर कुम्हलाया नहीं, वरन् कमल के समान खिल उठा। 12. सूर्य :-पुं० [सरति आकाशे, सुवति कर्मणि लोकं प्रेरयति वा । सृ गतौ, सू प्रेरणे वा] सूर्य, रवि। उन्मीलितं तूलिकयेव चित्रं सूर्यांशुभिन्नविवारविन्दम्। 1/37 जैसे कूँची से ठीक-ठीक रंग भरने पर चित्र खिल उठता है और सूर्य की किरणों का परस पाकर, कमल का फूल हँस उठता है। अरुण (ii) 1. अरुण :-पुं० [ऋ + उनन्] लाल रंग, ताम्र रंग। नयनान्यरुणानि घूर्णयन्वचनानि स्खलयन्यदे पदे। 4/12 अपने लाल-लाल नेत्र घुमाती हुई और एक-एक शब्द पर रुक-रुक कर बोलती हुई। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy