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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 541 कुमारसंभव अरण्यबीजाञ्जलिदानलालितास्तथा च तस्यां हरिणा विशश्वसुः। 5/19 वहाँ के जिन हरिणों को उन्होंने अपने हाथ में तिन्नी के दाने खिला-खिला कर पाला पोसा था, वे इतने परच गए थे। 2. कानन :-क्ली० [कं जलम् अननं जीवनमस्य । यद्वा कानयति दीपयाति, कन् दीप्तौ+णिच्+ल्युट्] वनम्, वन, जंगल। तच्छासनात्काननमेव सर्वं चित्रार्पितारम्भमिवावतस्थे। 3/42 यहाँ तक कि सारा वन उस एक ही संकेत में ऐसा लगने लगा, मानो चित्र खिंचा हुआ हो। 3. वन :-क्ली०स्त्री० [वनतीति, वन+पचाद्यच्] अटवी, विपिन, गहन, अरण्य। तस्मिन्वने संयमिनां मुनीनो तपः समाधेः प्रतिकूलवर्ती। 3/24 उस वन में पहुँच कर मुनियों के तप की समाधि को डिगाने वाला। दंष्ट्रिणो वन वराहयूथपा दष्टभंगुरबिसाङ्करा इव । 8/35 बड़े-बड़े दाँत वाले लंबे-चौड़े जंगली सूअर निकले चले आ रहे हैं, इनके दाँत ऐसे दिखाई देते हैं, मानो इनके जबड़ों में खाए हुए कमलों की डंठलें अटकी हुई हों। त्वामियं स्थितिमतीमुपागता गन्धमादन वनाधि देवता। 8/75 गन्ध मादन की वनदेवी अपने आप तुम्हारी आवभगत करने आ पहुँची है। पद्मभेदापिशुनाः सिषेविरे गन्धमादनवनान्त मारुताः। 8/86 उस समय गन्ध मादन वन का जो पवन मन्द-मन्द बह रहा था और जिसे छू जाने से ही मानो कमल खिलते जा रहे थे। अरणि 1. अरणि :-पुं० स्त्री० [ऋ+अनि] ईंधन, जलावन। उत्पत्तये हविर्भोक्तुर्यजमान इवारणिम्। 6/28 अग्नि उत्पन्न करने के लिए यजमान अरणि लाता है। 2. ईंधन :- जलावन। निकाम तप्ता विविधेन वह्निना नभश्चरेणेन्धन संभृतेन सा। 5/23 उधर ईंधन की आग तथा सूर्य की गर्मी से तपे हुए पार्वतीजी के शरीर से भाप निकल उठी। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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