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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 880 कालिदास पर्याय कोश रुचिरकनककांतीन्मुञ्चतः पुष्पराशीन्मृदुपवन विधूतान्पुष्पिताँश्चूतवृक्षान्। 6/30 जब मंद-मंद बहने वाले पवन के झोंके से हिलते हुए और सुंदर सुनहले बौर गिराने वाले बौरे हुए आम के वृक्षों को देखता है। 6. सस्य - [सस् + यत्] अन्न, धान्य, वृक्ष, वृक्ष की उपज। पटुतरदवदाहोच्छुष्कसस्यप्ररोहा: परुषपवनवेगोत्क्षिप्त संशुष्कपर्णाः। 1/22 जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपटों से सब वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं, अंधड़ में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं। सायक 1. इषु - [इष् + उ] बाण। इषुभिरिव सुतीक्ष्णैर्मानसं मानिनीनां तुदति कुसुममासो मन्मथोद्दीपनाय। 6/29 अपने पैने बाणों से यह वसंत मानिनी स्त्रियों के मन इसलिए बींध रहा है कि उनमें प्रेम जग जाय। 2. बाण - [बाण + घञ्] तीर, बाण, शर। दृष्ट्वा प्रिये सहृदयस्य भवेन्न कस्य कंदर्पबाणपतनव्यथितं हि चेतः। 6/20 यह देखकर किस रसिक का मन कामदेव के बाण से घायल नहीं हो जाता। 3. शर - [शृ + अच्] बाण, तीर। पत्युर्वियोगविषदग्धशरक्षतानां चन्द्रोदहत्यतितरां तनुमङ्गनानाम्। 3/9 उन स्त्रियों के अंग भूने डाल रहा है, जो अपने पतियों के बिछोह के विष-बुझे बाणों से घायल हुई घरों में पड़ी-पड़ी कलप रही हैं। अभिमुखमभिवीक्ष्य क्षामदेहोऽपि मार्गे मदनशरनिघातैर्मोहमेति प्रवासी। 6/30 बिछोह से दुबले-पतले शरीर वाला परदेसी जब अपने सामने मार्ग में इन्हें देखता है तो वह कामदेव के बाणों की चोट खाकर मूर्च्छित होकर गिर पड़ता है For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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