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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 872 कालिदास पर्याय कोश परदेसी एक तो यों ही बिछोह से दुबले-पतले शरीर का हुआ रहता है तिस पर जब मार्ग में अपने सामने यह देखता है, तो कामदेव के बाणों की चोट खाकर मूर्च्छित होकर गिर पड़ता है। 5. शरीर - [शृ + ईरन्] काया, देह, दैहिक शक्ति। हुताग्निकल्पैः सवितुर्गभस्तिभिः कलापिन: क्लान्तशरीरचेतसः। 1/16 हवन की अग्नि के समान जलते हुए सूर्य की किरणों से जिन मोरों के शरीर और मन दोनों सुस्त पड़ गए हैं। शशांकक्षत 1. चन्द्रभास - [चन्द् + णिच् + रक् + भासः] चाँदनी। रम्यः प्रदोषसमयः स्फुटचन्द्रभासः पुँस्कोकिलस्य विरुतं पवनः सुगन्धिः। 6/35 लुभावनी साँझें, छिटकी चाँदनी कोयल की कूक, सुगंधित पवन। 2. ज्योत्स्ना - [ज्योतिरस्ति अस्याम् - ज्योतिस् + न, उपघालोपः] चाँदनी, चंद्रमा का प्रकाश। ज्योत्स्नादुकूलममलं रजनी दधाना वृद्धिं प्रयात्यनुदिनं प्रमदेव बाला। 3/7 चाँदनी की उजली साडी पहने अलबेली छोकरी के समान दिन-दिन बढ़ती चली जा रही है। 3. शशांकक्षत - [शश + अच् + अङ्कः + क्षतः] चाँदनी, ज्योत्स्ना। निशाः शशाङ्कक्षतनीलराजयः क्वचिद्विचित्रं जलयन्त्र मन्दिरम्। 1/2 रात्रि में चारों ओर खिले हुए चंद्रमा की चाँदनी छिटकी हुई हो, रंग-बिरंगे फव्वारों के तले लोग बैठे हों। शालि 1. कलम् - [कल + अम्] चावल, धान। वप्राश्च पक्वकलमावृतभूमिभागाः प्रोत्कण्ठयन्ति न मनो भुवि कस्य यूनः। 3/5 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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