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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 867 ऋतुसंहार दिनकरपरितापक्षीणतोयः समन्ताद्विदधति भयमुच्चैर्वीक्ष्यमाणा वनान्ताः। 1/22 आजकल वन तो और भी डरावने लगने लगे हैं क्योंकि सूर्य की गर्मी से चारों ओर का जल सूख गया है। भ्रमति गवययूथः सर्वतस्तोयमिच्छन्शरभकुलमजिह्मप्रोद्धरत्यम्बु कूपात्। 1/23 पशुओं के झुंड चारों ओर पानी की खोज में घूम रहे हैं, और शरभों का झुंड एक कुएँ से गयगट पानी पीता जा रहा है। तृषाकुलैश्चातकपक्षिणां कुलैः प्रयाचितास्तोयभरावलम्बिनः। 2/3 जिनसे पपीहे पिउ-पिउ करके पानी मांग रहे हैं, ऐसे पानी के भार से नीचे झुके हुए बादल। तडिल्लताशक्रधनुर्विभूषिताः पयोधरास्तोयभरावलम्बिनः। 2/20 इंद्रधनुष और बिजली के चमकते हुए पतले धागों से सजी हुई और पानी के भार से झुकी हुई काली-काली घाएँ। कुवलयदलनीलैरुन्नतैस्तोयनर्मूदुपवनविधूतैर्मन्दमन्दं चलद्भिः । 2/23 कमल के पत्तों के समान साँवले, पानी के भार से झुक जाने के कारण कम ऊंचाई पर छाए हुए और पवन के सहारे धीरे-धीरे चलने वाले। जलभरनमितानामाश्रयोऽस्माकमुच्चैरयमिति जलसेकैस्तोयदास्तोयनम्राः। 2/28 ये पानी के बोझ से झुके हुए बादल, अपने ठंडे जल की फुहार से मानो यह समझकर बुझा रहे हैं, कि जब हम पानी के बोझ से लदकर आते हैं, तो यही हमें सहारा देता है। प्रसन्नतोयानि सुशीतलानि सरासि चेतांसि हरन्ति पुंसाम्। 4/9 जिन तालों में ठंड निर्मल जल भरा हुआ है, उन्हें देखकर लोगों का जी खिल उठता है। 6. नीर - [नी + रक्] पानी, जल। मार्ग समीक्ष्यतिनिरस्तनीरं प्रवासखिन्नं पतिमुद्वहन्त्यः। 4/10 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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