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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 860 www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास पर्याय कोश नवजलकणसेकादुद्गतां रोमराजीं ललितवलिभिङ्गैर्मध्यदेशैश्च नार्यः । 2 / 26 स्त्रियों के पेट पर दिखाई पड़ने वाली सुंदर तिहरी सिकुड़नों पर जब वर्षा की नई फुहारें पड़ती हैं, तो वहाँ के नन्हें-नन्हें रोएँ खड़े हो जाते हैं। हंसैर्जिता सुललिता गतिरङ्गनानामम्भोरुहैर्विकसितैर्मुखचन्द्रकान्तिः । 3/17 हंसों ने सुंदरियों की मनभावनी चाल को, कमलिनियों ने उनके चंद्रमुख की चमक को हरा दिया है । कूर्पासकं परिदधाति नखक्षताङ्गी व्यालम्बिनीलललितालक कुञ्चिताक्षी । 4/17 नखों के घावों से भरे हुए अंगों वाली और लटकाती हुई सुंदर अलकों से ढकी हुई आँखों वाली स्त्री अपनी चोली पहनने लगी है। 8. सुभग [ सु + भग] प्रिय, सुंदर, मनोहर, मनोरम । चूतद्रुमाणां कुसुमान्वितानां ददाति सौभाग्यमयं वसन्तः । 6/4 वसंत के आने से मंजरी से लदी आमों की डालें और भी सुहावनी लगने लगी हैं। वायुर्विवाति हृदयानि हरन्नराणां नीहारपातविगमात्सुभगोवसन्ते। 6/24 वसंत में पाला तो पड़ता नहीं, इसलिए सुंदर वसंती पवन लोगों का मन हरता हुआ बह रहा है। For Private And Personal Use Only राज् 1. राज्- चमकना, जगमगाना, प्रतीत होना, दिखाई देना । निशा: शशाङ्कक्षतनीलराजयः क्वचिद्विचित्र जलयन्त्रमन्दिरम् । 1/2 चारों ओर खिले हुए चंद्रमा की चाँदनी छिटकी हुई हो, रंग-बिरंगे फव्वारों के तले लोग बैठे हुए हों । 2. विभा [ वि + भा] चमकना, दिखाई देना, प्रकट होना। विभाति शुक्लेतररत्नभूषिता वराङ्गनेव क्षितिरिन्द्रगोपकैः । 2/5 वीर बहूटी से छाई हुई धरती उस नायिका जैसी दिखाई दे रही है, जो धौले रत्न छोड़कर और सभी रंग के रत्नों वाले आभूषणों से सजी हई है।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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