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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 858 कालिदास पर्याय कोश फूले हुए कांस के कपड़े पहने, मस्त हंसों की बोली के सुहावने बिछुए पहने और खिले हुए कमल के समान सुंदर मुख वाली। नवप्रवालोद्गमसस्यरम्यःप्रफुल्ललोधः परिपक्वशालिः। 4/1 गेहूँ, जौ आदि के नये-नये अंकुर निकल जाने से चारों ओर सुहावना दिखलाई देने लगा है, लोध के पेड़ फूलों से लद गए हैं, धान पक चला है। न वायवः सान्द्रतुषारशीतला जनस्य चित्तं रमयन्ति सांप्रतम्। 5/3 न घनी ओस से ठंडा बना हुआ वायु ही लोगों के मन को भाता है। सुखाः प्रदोषा दिवसाश्च रम्याः सर्वं प्रिये चारुतरं वसन्ते। 6/2 साँझें सुहावनी हो चली हैं, और दिन लुभावने हो गए हैं, सचमुच सुंदर वसंत में सब कुछ सुहावना लगने लगता है। समदमधुकराणां कोकिलानां च नादैः कुसुमितसहकारैः कर्णिकारैश्च रम्यः। 6/29 कोयल और भौंरो के स्वरों से गूंजते हुए बौरे हुए आम के पेड़ों से भरा हुआ मनोहर कनैर के फूलों वाले। रम्यः प्रदोषसमयः स्फुटचन्द्रभासः पुँस्कोकिलस्य विरुतं पवनः सुगन्धिः। 6/35 लुभावनी साँझें, छिटकी चाँदनी, कोयल की कूक, सुगंधित पवन। मलयपवनविद्धः कोकिलालाप रम्यः सुरभिमधुनिषेकाल्लब्धगन्धप्रबन्धः। 6/37 मलय के वायु वाला, कोकिल की कूक से जी लुभाने वाला, सदा सुगंधित मधु बरसाने वाला। रुचिर - [रुचिं राति ददाति - रुच् + किरच्] स्वादिष्ट, मधुर, ललित, चमकदार, उज्ज्वल। जनितरुचिरगन्धः केतकीनां रजोभिः परिहरति नभस्वान्प्रोषितानां मनांसि। 2/27 केतकी के फूलों का पराग लेकर चारों ओर मनभावनी सुगंध फैलाने वाला पवन परदेसियों का मन चुरा रहा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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