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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 847 कमल पर बैठकर गुनगुनाता यह भौंरा भी अपनी प्यारी का मनचाहा काम कर रहा है। 3. अंबुरुह - [ अम्ब + उण् + रुहः] कमल। सपत्रलेखेषु विलासिनीनां वक्त्रेषु हेमाम्बुरुहोपमेषु। 6/8 सुनहरे कमल के समान सुहावने और बेलबूटे चीते हुए स्त्रियों के मुखों पर। अंभोरुह - [आप् (अम्भ) + असुन् + रुहः] कमल। हंसैर्जिता सुललिता गतिरङ्गनानामभोरुहैर्विकसितैर्मुखचन्द्रकान्तिः। 3/17 हंसों ने सुंदरियों की मनभावनी चाल को, कमलिनियों ने उनके चंद्रमुख की चमक को हरा दिया है। 5. अरविन्द - [अरान् चक्रङ्गानीव पत्राणि विन्दते - अर + विन्द + श ] कमल। काचिद्विभूषयति दर्पणसक्तहस्ता बालातपेषु वनिता वदनारविन्दम्। 4/14 एक स्त्री, हाथ में दर्पण लिए हुए प्रातः काल की धूप में बैठी अपने कमल जैसे मुँह का सिंगार कर रही है। 6. इंदीवर - नीलकमल, कमल। विलोचनेन्दीवरवारिबिन्दुभिर्निषिक्तबिम्बाधरचारुपल्लवाः। 2/12 अपने बिंबाफल जैसे लाल और नई कोंपलों जैसे कोमल होों पर अपनी कमल जैसी आँखों से आँसू बरसाती हुई। 7. उत्पल - [ उद् + पल् + अच्] नीलकमल, कमल, कुमुद। नितान्तनीलोत्पलपत्रकान्तिभिः क्वचित्प्रभिन्नाञ्जनराशिसंनिभैः। 2/2 कहीं तो अत्यंत नीले कमल की पंखड़ी जैसे नीले और कहीं घुटे हुए आँजन की ढेरी के समान काले-काले बादल। विलोलनेत्रोत्पलशोभिताननैर्मृगैः समन्तादुपजातसाध्वसैः। 2/9 कमल के समान सुहावनी चंचल आँखों के कारण सुंदर मुखवाले डरे हुए हरिणों से भरा हुआ। पतन्ति मूढाः शिखिनां प्रनृत्यतां कलापचक्रेषु नवोत्पलाशया। 2/14 वे हड़बड़ी में भूल से, नाचते हुए मोरों के खुले पंखों को नये कमल समझकर उन्हीं पर टूटे हुए पड़ रहे हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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