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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 845 अपनी प्यारियों के मुखड़ों पर रीझे हुए प्रेमियों को यह कोयल भी अपनी मीठी कूक सुना-सुनाकर मारे डाल रही है। 1. मृग मृग - [मृग + क] चौपाया जानवर, हरिण, बारहसिंगा। मृगाः प्रचण्डातपतापिता भृशं तृषामहत्या परिशुष्क तालवः। 1/11 जलते हुए सूर्य की किरणों से झुलसे जिन हरिणों की जीभ प्यास से बहुत सूख गई है। प्रसरति तृणमध्ये लब्धवृद्धिः क्षणेन ग्लपयति मृगवर्गं प्रान्तलग्नो दवाग्निः। 1/25 अग्नि की लपट, पहाड़ की घाटियों में फैलती हुई सभी पशुओं व हरिणों को जलाए डाल रही है और क्षण भर में आगे बढ़कर घास पकड़ लेती है। विलोलनेत्रोत्पलशोभिताननैमृगैः समन्तादुपजातसाध्वसैः। 2/9 कमल के समान सुहावनी चंचल आँखों के कारण सुंदर मुखवाले डरे हुए हरिणों से भरा हुआ। प्रभूतशालिप्रसवैश्चितान मृगाङ्गना यूथ विभूषितानि। 4/8 जिन खेतों में भरपूर धान लहलहा रहा है, हरिणियों के झुंड के झुंड चौकड़ियाँ भर रहे हैं। हरिण - [ह + इनन्] मृग, बारह सिंगा। अवेक्ष्यमाणा हरिणेक्षणाक्ष्यः प्रबोधयन्तीव मनोरथानि। 4/10 वे मृगनयनी स्त्रियाँ जब मार्ग को देखती हैं तो यह सोचती हैं कि जब हमारे पति आवेंगें, तब यों मिलेंगी, यों बातें करेंगी। मृगेश्वर 1. केसरी - [ केसर + इनि] सिंह। प्रवृद्ध तृष्णोपहता जलार्थिनो न दन्तिन: केसरिणोऽपि बिभ्यति। 1/15 जो हाथी धूप और प्यास से बेचैन होकर पानी की खोज में इधर-उधर भटक रहे हैं, वे इस समय सिंह से भी नहीं डर रहे हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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