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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 829 कूजद्विरेफोऽप्ययमम्बुजस्थ प्रियं प्रियायाः प्रकरोति चाटु। 6/16 कमल पर बैठकर गुनगुनाता हुआ यह भौंरा भी अपनी प्यारी का मनचाहा काम कर रहा है। मत्तद्विरेफपरिचुम्बितचारुपुष्पा मन्दानिलाकुलितनम्रमृदुप्रवालाः। 6/19 फूलों को मतवाले भौरें चूम रहे हैं और नये कोमल पत्ते मंद-मंद पवन में झूल रहे हैं। रक्ताशोकविकल्पिताधरमधुर्मत्तद्विरेफस्वनः कुन्दापीडविशुद्ध दन्त निकरः प्रोत्फुल्ल पद्माननः। 6/36 अमृत भरे अधरों के समान लाल अशोक से मतवाले भौंरों की गूंज से, दाँतों की चमकती हुई पाँतों जैसे उजले कुंद के हारों से, भली भाँति खिले हुए कमल के समान मुखों से। 3. भुंग - [भृ + गन् कित्, नट् च] भौंरा। विपत्र पुष्पां नलिनी समुत्सुका विहाय भृङ्गाः श्रुतिहारि निस्वनाः। 2/14 कानों को सुहाने वाली मीठी तानें लेकर गूंजते हुए भौरे, उस कमल को छोड़-छोड़कर चले जा रहे हैं, जिसके पत्ते और फूल झड़ गए हैं। कपोलदेशा विमलोत्पलप्रभाः सभृङ्गयूथैर्मदवारिभिश्चितः। 2/15 जब उनके माथे से बहते हए मद पर भौरे आकर लिपट जाते हैं, उस समय उनके माथे स्वच्छ नीले कमल जैसे दिखाई देने लगते हैं। पुँस्कोकिलैः कलवचोभिरुपात्तहर्षेः कूजद्भिरुन्मदकलानि वचांसि भृङ्गैः। 6/23 मगन होकर मीठे स्वर में कूकने वाले नर कोयलों ने और मस्ती में गूंजते हुए भौंरों ने। मासे मधौ मधुरकोकिलभृङ्गनादैर्नार्यो हरन्ति हृदयं प्रसभं नराणाम्। 6/26 चैत में जब कोयल कूकने लगती है, भौरे गूंजने लगते हैं, उस समय स्त्रियाँ बलपूर्वक लोगों का मन अपनी ओर खींच लेती हैं। मधुकर - [मन्यत इति मधु, मन + उ नस्य ध:- करः] भौंरा। समदमधुकराणां कोकिलानां च नादैः कुसुमित सहकारैः कर्णिकारैश्च रम्यः। 6/29 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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