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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3. ऋतुसंहार 825 जिन बादलों में इंद्रधनुष निकल आया है, उन्होंने परदेस में गए हुए लोगों की उन स्त्रियों की सब सुध-बुध हर ली है। अधररुचिरशोभा बन्धुजीवे प्रियाणां पथिकजन इदानीं रोदिति भ्रान्तचित्तः। 3/26 जब परदेस में गए हुए लोग बंधुजीव के फूलों में अपनी प्रियतमा के निचले होठों की चमकती हुई सुंदरता की चमक पाते हैं, तब वे सुध-बुध भूलकर रोने लगते हैं। प्रवासी- [प्र + वस् + णिनि] यात्री, बटोही, परदेशी। न शक्यते द्रष्टुमपि प्रवासिभिः प्रियावियोगानलदग्धमानसैः। 1/10 परदेश में गये हुए जिन प्रेमियों का हृदय अपनी प्रेमिकाओं के बिछोह की तपन से झुलस गया है, उनसे यह देखा नहीं जाता। सविभ्रमैः सस्मितजिह्मवीक्षितैर्विलासवत्यो मनसि प्रवासिनाम्। 1/12 वे सुंदरियाँ बड़ी चटक-मटक और मुस्कुराहट के साथ अपनी चितवन चलाकर परदेसियों के मन में। सुतीक्ष्णधारापतनोग्रसायकैस्स्तुदन्ति चेतः प्रसभं प्रवासिनाम्। 2/4 अपनी तीखी धारों के पैने बाण चलाकर परदेसियों का मन कसमसा रहे हैं। निरस्तमाल्याभरणानुलेपनाः स्थिता निराशाः प्रमदाः प्रवासिनाम्। 2/12 परदेसियों की स्त्रियाँ अपनी माला, आभूषण, तेल, उबटन, आदि सब कुछ छोड़कर गाल पर हाथ धरे बैठी हैं। स्त्रियश्च काञ्चीमणिकुण्डलोज्ज्वला हरन्ति चेतो युगपत्प्रवासिनाम्।2/20 करधनी तथा रत्न जड़े कुंडलों से सजी हुई स्त्रियाँ, ये दोनों परदेस में बैठे हुए लोगों का मन एक साथ हर लेती हैं। अभिमुखमभिवीक्ष्य क्षामदेहोऽपि मार्गे मदनशरनिघातैर्मोहमेति प्रवासी। 6/30 परदेसी एक तो यों ही बिछोह से दुबला-पतला रहता है, तिस पर अपने सामने मार्ग में इन्हें देखकर कामदेव के बाणों की चोट खाकर मूर्छित होकर गिर पड़ता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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