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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 823 भारी नितंबों वाली, गहरी नाभि वाली, लचकदार कमरवाली और मनभावनी सुंदरता वाली स्त्री प्रातः काल पलँग छोड़कर उठ रही है। कान्तामुखद्युतिजुषाम चिरोद्गतानां शोभा परां कुरबक दुम मञ्जरीणाम्। 6/20 अभी खिले हुए और स्त्रियों के मुख के समान सुंदर लगने वाले कुरबक के फूलों की अनोखी शोभा देखकर। 8. श्री - [श्रि + क्विप्, नि०] सौंदर्य, कांति, महिमा। मुक्त्वा कदम्बकुटजार्जुनसर्जनीपासप्तच्छदानुपगताकुसमोद्गमश्रीः। 3/13 फूलों की सुंदरता भी कदंब, कुटज, अर्जुन, सर्ज और अशोक के वृक्षों को छोड़कर छतिवन के पेड़ पर जा बसी है। बन्धूककान्तिमधरेषु मनोहरेषु क्वापि प्रयाति सुभगा शरदागमश्रीः। 3/27 शरद की सुंदर शोभा, कहीं बंधूक के फूलों की लाली छोड़कर उनके निचले होरों में जा चढ़ी है। प्ररोह 1. प्ररोह - [ प्र + रुह् + घञ्] टहनी, शाखा, कोंपल। पटुतरदवदाहोच्छुष्क सस्य प्ररोहाः परुषपवनवेगोत्क्षिप्त संशुष्कपर्णाः। 1/22 जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपट से वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं, अंधड़ में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं। 2. लता - [लत् + अच् + यप्] बेल, शाखा। श्यामालताः कुसुमभारनतप्रवालाः स्त्रीणां हरन्ति धृतभूषण बाहुकान्तिम्। 3/18 जिन हरी बेलों की टहनियाँ फूलों के बोझ से झुक गई हैं, उनकी सुन्दरता ने स्त्रियों की गहनों से सजी हुई बाहों की सुन्दरता छीन ली है। 3. शाखा - [ शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + यप्] डाली, शाख। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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