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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार कहीं तो अत्यंत नीले कमल की पंखड़ी जैसे नीले और कहीं घुटे हुए आँजन की ढेरी के समान काले-काले । 813 विपत्रपुष्पां नलिनीं समुत्सुका विहाय भृङ्गाः श्रुतिहारिनिस्वनाः । 2 / 14 कानों को सुहाने वाली मीठी तानें लेकर गूँजते हुए भौरे, उस कमल को छोड़-छोड़कर चले जा रहे हैं, जिनके पत्ते और फूल झड़ गए हैं। उत्कण्ठयत्यतितरां पवनः प्रभाते पत्रान्तलग्नतुहिनाम्बु विधूयमानः । 3 / 15 प्रात: काल पत्तों पर पड़ी हुई ओस की बूंदे गिराता हुआ, जो पवन धीमे-धीमे बह रहा है, वह किसे मस्त नहीं बना देता । गात्राणि कालीयकचर्चितानि सपत्रलेखानि मुखाम्बुजानि । 4/5 अपने शरीर पर चंदन मलती हैं, अपने कमल जैसे मुँह पर अनेक प्रकार के बेल-बूटे बनाती हैं। सपत्रलेखेषु विलासिनीनां वक्त्रेषु हेमाम्बुरुहोपमेषु । 6 / 8 सुनहरे कमल के समान सुहावने और बेल-बूटे चीते हुए स्त्रियों के मुखों पर । 4. पर्ण [ पर्ण + अच्] पत्ता । पटुतरदवदाहोच्छुष्कसस्य प्ररोहाः परुषपवनवेगोत्क्षिप्त संशुष्क पर्णाः । 1 / 22 जंगल की आग की बड़ी-बड़ी लपटों से सब वृक्षों की टहनियाँ झुलस गई हैं, में पड़कर सूखे हुए पत्ते ऊपर उड़े जा रहे हैं। श्वसिति विहगवर्गः शीर्णपर्णदुमस्थः कपिकुलमुपयाति क्लान्तमद्रेर्निकुञ्जम्। 1/23 जिन वृक्षों के पत्ते झड़ गए हैं, उन पर बैठी हुई सभी चिड़ियाँ हाँफ रही हैं, उदास बंदरों के झुंड पहाड़ की गुफाओं में घुसे जा रहे हैं । For Private And Personal Use Only 5. पल्लव - [ पल् + क्विप् पल् लू + अप्लव, पल् चासौ लवश्च कर्म० स०] अंकुर, कोंपल, टहनी । वनानि वैन्ध्यानि हरन्ति मानसं विभूषितान्यद्गतपल्लवैर्दुमैः । 2/8 नई कोंपलों वाले वृक्षों से छाए हुए विंध्याचल के जंगल किसका मन नहीं लुभा लेते।
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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