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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 792 कालिदास पर्याय कोश सविभ्रमैः सस्मितजिह्मवीक्षितैर्विलासवत्यो मनसि प्रवासिनाम्। 1/12 वे स्त्रियाँ बड़ी चटक-मटक और मुस्कुराहट के साथ अपनी चितवन चलाकर परदेसियों के मन में। जनितरुचिरगन्धः केतकीनां रजोभिः परिहरति नभस्वान्प्रोषितानां मनांसि। 2/27 पवन, केतकी के फूलों का पराग लेकर चारों ओर मनभावनी सुगंध फैला रहा है और परदेस गए प्रेमियों के मन चुरा रहा है। वप्राश्च पक्वकलमावृतभूमिभागाः प्रोत्कण्ठयन्ति न मनो भुवि कस्य यूनः। 3/5 पके हुए धान से लदे हुए सुंदर खेत, इस संसार में किस युवक का मन डाँवाडोल नहीं कर देते। पर्यन्तसंस्थितमृगीनयनोत्पलानि प्रोत्कण्ठयन्त्युपवनानि मनांसि पुंसाम्। 3/14 जिनमें कमल जैसी आँखों वाली हरिणियाँ जहाँ-तहाँ बैठी पगुरा रही हैं, उन्हें देखकर लोगों के मन हाथ से निकल जाते हैं। मनांसि भेत्तुं सुरतप्रसङ्गिनां वसन्तयोद्धा समुपागतः प्रिये। 6/1 प्यारी! वीर वसंत संभोग करने वाले रसिकों का मन बेधने आ पहुंचा है। कुर्वन्ति कामिमनसां सहसोत्सुकत्वं बालातिमुक्तलतिकाः समवेक्ष्यमाणाः। 6/19 छोटी-छोटी अतिमुक्त लताओं के फूलों को देख-देखकर कामियों का मन अचानक डाँवाडोल हो उठता है। यत्कोकिलः पुनरयं मधुरैर्वचोभियूंना मनः सुवदनानिहितं निहन्ति। 6/22 अपनी प्यारियों के मुखड़ों पर रीझे हुए प्रेमियों के हृदय को कोयल भी अपनी मीठी कूक सुनाकर टूक-टूक कर रही है। चित्तं मुनेरपि हरन्ति निवृत्तरागं प्रागेव रागमलिनानि मनांसि यूनाम्। 6/25 जब मोह-माया से दूर रहने वाले मुनियों तक का मन हर लेते हैं, फिर नवयुवकों के प्रेमी हृदय की तो बात ही क्या। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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