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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 786 कालिदास पर्याय कोश पत्युर्वियोगविषदग्धशरक्षतानां चन्द्रो दहत्यतितरां तनुमङ्गनानाम्। 3/9 चंद्रमा उन स्त्रियों के अंग भूने डाल रहा है, जो अपने पतियों के बिछोह के विष-बुझे बाणों से घायल हुई घरों में पड़ी-पड़ी कलप रही हैं। हंसैर्जिता सुललिता गतिरङ्गनानामम्भोरुहैर्विकसितैर्मुखचन्द्रकान्तिः।3/17 हंसों ने सुंदरियों की मनभावनी चाल को, कमलिनियों ने उनके चंद्र मुख की चमक को। श्रियमतिशयरूपां व्योम तोयाशयनां वहति विगतमेघं चन्द्रतारावकीर्णम्। 3/21 खिले हुए चंद्रमा और छिटके हुए तारों से भरा हुआ आकाश उन तालों के समान दिख रहा है। विगतकलुषमम्भः श्यानपङ्का धरित्री विमलकिरणचन्द्रव्योम ताराविचित्रम्। 3/22 पानी का गंदलापन दूर हो गया है, धरती पर का सारा कीचड़ सूख गया है और आकाश में स्वच्छ किरणों वाला चंद्रमा और तारे निकल आए हैं। करकमलमनोज्ञाः कान्तसंसक्तहस्ता वदनविजितचन्द्राः कश्चिदन्यास्तरुण्यः। 3/23 चंद्रमा से भी अधिक सुंदर मुखवाली युवतियाँ अपने सुंदर कमल जैसे हाथ अपने प्रेमी के हाथों में डालकर चली जा रही हैं। कुमुदपि गतेऽस्तं लीयते चन्द्रबिम्बे हसितमिव वधूनां प्रोषितेषु प्रियेषु। 3/25 जैसे प्रिय के परदेश चले जाने पर स्त्रियों की मुस्कुराहट चली जाती है, वैसे ही चंद्रमा के छिप जाने पर कोई सकुचा जाती है। न चन्दनं चन्द्रमरीचिशीतलं न हर्म्यपृष्ठं शरदिन्दुिनिर्मलम्। 5/3 न किसी को चंद्रमा की किरणों से ठंडाया हुआ चंदन ही अच्छा लगता है, न शरद के चंद्रमा के समान निर्मल छतें सुहाती हैं। रम्यः प्रदोषसमयः स्फुटचन्द्रभासः पुँस्कोकिलस्य विरुतं पवनः सुगन्धिः। 6/35 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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